अध्याय २

अध्याय २ शलोक ६२

अध्याय २ शलोक ६२ The Gita – Chapter 2 – Shloka 62 Shloka 62  विषयों का चिन्तन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्त्ति हो जाती है, आसक्त्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है ।। ६२ ।। Those who always think about […]

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अध्याय २ शलोक ६१

अध्याय २ शलोक ६१ The Gita – Chapter 2 – Shloka 61 Shloka 61  इसलिये साधक को चाहिये कि वह उन सम्पूर्ण इन्द्रियों को वश में करके समाहितचित्त हुआ मेरे परायण होकर ध्यान में बैठे ; क्योंकि जिस पुरुष की इन्द्रियाँ वश में होती हैं, उसी की बुद्भि स्थिर हो जाती है ।। ६१ ।।

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अध्याय २ शलोक ६०

अध्याय २ शलोक ६० The Gita – Chapter 2 – Shloka 60 Shloka 60  हे अर्जुन ! आसक्त्ति का नाश न होने के कारण ये प्रमथन स्वभाव वाली इन्द्रियाँ यत्त्न करते हुए बुद्भिमान् पुरुष के मन को भी बलात्कार से हर लेती हैं ।। ६० ।। The Blessed Lord said: Even those who are wise

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अध्याय २ शलोक ५९

अध्याय २ शलोक ५९ The Gita – Chapter 2 – Shloka 59 Shloka 59  इन्द्रियों के द्वारा विषयों को ग्रहण न करने वाले पुरुष के भी केवल विषय तो निवृत हो जाते हैं, परन्तु उनमें रहने वाली आसक्त्ति निवृत नहीं होती । इस स्थिर प्रज्ञ पुरुष की तो आसक्त्ति भी परमात्मा का साक्षात्कार करके निवृत

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अध्याय २ शलोक ५८

अध्याय २ शलोक ५८ The Gita – Chapter 2 – Shloka 58 Shloka 58  और कछुआ सब ओर से अपने अंगो को जैसे समेट लेता है, वैसे ही जब यह पुरुष इन्द्रियों के विषयों से इन्द्रियों को सब प्रकार से हटा लेता है, तब उसकी बुद्भि स्थिर है ( ऐसा समझना चाहिये ) ।। ५८

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अध्याय २ शलोक ५७

अध्याय २ शलोक ५७ The Gita – Chapter 2 – Shloka 57 Shloka 57  जो पुरुष सर्वत्र स्नेह रहित हुआ उस-उस शुभ या अशुभ वस्तु को प्राप्त होकर न प्रसन्न होता है और न द्बेष करता है, उसकी बुद्भि स्थिर है ।। ५७ ।। A man has a decisive intellect, who is no longer attached

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अध्याय २ शलोक ५६

अध्याय २ शलोक ५६ The Gita – Chapter 2 – Shloka 56 Shloka 56  दुःखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्बेग नहीं होता, सुखों की प्राप्ति में जो सर्वथा नि:स्पृह है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गये हैं, ऐसा मुनि स्थिर बुद्भि कहा जाता है ।। ५६ ।। He whose

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अध्याय २ शलोक ५५

अध्याय २ शलोक ५५ The Gita – Chapter 2 – Shloka 55 Shloka 55  श्री भगवान् बोले — हे अर्जुन ! जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भली भांति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, उस काल में वह स्थित प्रज्ञ कहा जाता है

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अध्याय २ शलोक ५४

अध्याय २ शलोक ५४ The Gita – Chapter 2 – Shloka 54 Shloka 54  अर्जुन बोले — हे केशव ! समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त हुए स्थिर बुद्भि पुरुष का क्या लक्षण है ? वह स्थिर बुद्भि पुरुष कैसे बोलता है, कैसे बैठता है और कैसे चलता है ।। ५४ ।। Arjuna asked the

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अध्याय २ शलोक ५३

अध्याय २ शलोक ५३ The Gita – Chapter 2 – Shloka 53 Shloka 53  भांति-भांति के वचनों को सुनने से विचलित हुई तेरी बुद्भि जब परमात्मा में अचल और स्थिर ठहर जायगी, तब तू योग को प्राप्त हो जायगा अर्थात् तेरा परमात्मा से नित्य संयोग हो जायेगा ।। ५३ ।। Your intellect, O ARJUNA, will

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