अध्याय २

अध्याय २ शलोक ७२

अध्याय २ शलोक ७२ The Gita – Chapter 2 – Shloka 72 Shloka 72  हे अर्जुन ! यह ब्रह्म को प्राप्त हुए पुरुष की स्थिति है, इसको प्राप्त होकर योगी कभी मोहित नहीं होता और अन्तकाल में भी इस ब्राह्मी स्थिति में स्थित होकर ब्रह्मानन्द को प्राप्त हो जाता है ।। ७२ ।। The Blessed […]

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अध्याय २ शलोक ७१

अध्याय २ शलोक ७१ The Gita – Chapter 2 – Shloka 71 Shloka 71  जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को त्याग कर ममता रहित, अहंकार रहित और स्पृहारहित हुआ विचरता है, वही शान्ति को प्राप्त होता है अर्थात् वह शान्ति को प्राप्त है ।। ७१ ।। The Blessed Lord said: By giving up all desires, freeing

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अध्याय २ शलोक ७०

अध्याय २ शलोक ७० The Gita – Chapter 2 – Shloka 70 Shloka 70  जैसे नाना नदियों के जल सब ओर से परिपूर्ण अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में उसको विचलित न करते हुए ही समा जाते हैं, वैसे ही सब भोग जिस स्थित प्रज्ञ पुरुष में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न किये बिना ही समा

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अध्याय २ शलोक ६९

अध्याय २ शलोक ६९ The Gita – Chapter 2 – Shloka 69 Shloka 69  सम्पूर्ण प्राणियों के लिये जो रात्रि के समान है, उस नित्य ज्ञान स्वरूप परमानन्द की प्राप्ति में स्थित प्रज्ञ योगी जागता है और जिस नाशवान् सांसारिक सुख की प्राप्ति में सब प्राणी जागते हैं, परमात्मा के तत्त्व को जानने वाले मुनि

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अध्याय २ शलोक ६८

अध्याय २ शलोक ६८ The Gita – Chapter 2 – Shloka 68 Shloka 68  इसलिये हे महाबाहो ! जिस पुरुष की इन्द्रियाँ, इन्द्रियों के विषयों से सब प्रकार निग्रह की हुई हैं, उसी की बुद्भि स्थिर है ।। ६८ ।। O ARJUNA, therefore with senses under control, protected from sensual objects, not only does one

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अध्याय २ शलोक ६७

अध्याय २ शलोक ६७ The Gita – Chapter 2 – Shloka 67 Shloka 67  क्योंकि जैसे जल में चलने वाली नाव को वायु हर लेती है, वैसे ही विषयों में विचरती हुई इन्द्रियों में से मन जिस इन्द्रिय के साथ रहता है, वह एक ही इन्द्रिय इस अयुक्त्त पुरुष की बुद्बि को हर लेती है

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अध्याय २ शलोक ६६

अध्याय २ शलोक ६६ The Gita – Chapter 2 – Shloka 66 Shloka 66  न जीते हुए मन और इन्द्रियों वाले पुरुष में निश्चयात्मिका बुद्भि नहीं होती और उस अयुक्त्त मनुष्य के अन्त:करण में भावना भी नहीं होती तथा भावनाहीन मनुष्यों को शान्ति नहीं मिलती और शान्ति रहित मनुष्य को सुख कैसे मिल सकता है

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अध्याय २ शलोक ६५

अध्याय २ शलोक ६५ The Gita – Chapter 2 – Shloka 65 Shloka 65  अन्त:करण की प्रसन्नता होने पर इसके सम्पूर्ण दुःखों का अभाव हो जाता है और उस प्रसन्न चित्त वाले कर्मयोगी की बुद्भि शीघ्र ही सब ओर से हटकर एक परमात्मा में ही भली भाँति स्थिर हो जाती है ।। ६५ ।। Purity of

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अध्याय २ शलोक ६४

अध्याय २ शलोक ६४ The Gita – Chapter 2 – Shloka 64 Shloka 64  परन्तु अपने अधीन किये हुए अन्त:करण वाला साधक अपने वश में की हुई राग-द्बेष से रहित इन्द्रियों द्वारा विषयों में विचरण करता हुआ अन्त:करण की प्रसन्नता को प्राप्त होता है ।। ६४ ।। But the disciplined wise man who has control

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अध्याय २ शलोक ६३

अध्याय २ शलोक ६३ The Gita – Chapter 2 – Shloka 63 Shloka 63  क्रोध से अत्यन्त मूढ़भाव उत्पन्न हो जाता है, मूढ़भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है, स्मृति में भ्रम हो जाने से बुद्भि अर्थात् ज्ञान शक्त्ति का नाश हो जाता है और बुद्भि का नाश हो जाने से यह पुरुष अपनी

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