अध्याय १

अध्याय १ शलोक ३६

अध्याय १ शलोक ३६ The Gita – Chapter 1 – Shloka 36 Shloka 36 हे जनार्दन ! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या प्रसन्नता होगी ? इन आततायियों को मारकर तो हमें पाप ही लगेगा ।। ३६ ।। What satisfaction or pleasure can we possibly derive, O JANARDHANA (Krishna) by doing away with the […]

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अध्याय १ शलोक ३५

अध्याय १ शलोक ३५ The Gita – Chapter 1 – Shloka 35 Shloka 35 हे मधुसूदन ! मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्य के लिये भी मैं इन सबको मारना नहीं चाहता, फिर पृथ्वी के लिये तो कहना ही क्या है ? ।। ३५ ।। Arjuna spoke to the Lord Madhusudhana (Lord

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अध्याय १ शलोक ३४

अध्याय १ शलोक ३४ The Gita – Chapter 1 – Shloka 34 Shloka 34 गुरुजन, ताऊ-चाचे, लड़के और उसी प्रकार दादे, मामे, ससुर, पौत्र, साले तथा और भी सम्बन्धी लोग हैं ।। ३४ ।। O Lord KRISHNA, I do not want to kill my teachers, uncles, friends, fathers-in-law, grandsons, brothers-in-law, and other relatives and well-wishers.

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अध्याय १ शलोक ३३

अध्याय १ शलोक ३३ The Gita – Chapter 1 – Shloka 33 Shloka 33 हमें जिनके लिये राज्य, भोग और सुखादिं अभीष्ट हैं, वे ही ये सब धन और जीवन की आशा को त्याग कर युद्ध में खड़े हैं ।। ३३ ।। Those whom we seek these pleasures from (the enjoyment of kingdom), are standing

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अध्याय १ शलोक ३२

अध्याय १ शलोक ३२ The Gita – Chapter 1 – Shloka 32 Shloka 32 हे कृष्ण ! मैं न तो विजय चाहता हूँ और न राज्य तथा सुखों को ही । हे गोविन्द ! हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है ? ।। ३२

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अध्याय १ शलोक ३१

अध्याय १ शलोक ३१ The Gita – Chapter 1 – Shloka 31 Shloka 31 हे केशव ! मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्ध में स्वजन-समुदाय को मारकर कल्याण भी नहीं देखता ।। ३१ ।। I cannot see any good in slaughtering and killing my friends and relatives in battle. O

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अध्याय १ शलोक ३०

अध्याय १ शलोक ३० The Gita – Chapter 1 – Shloka 30 Shloka 30 हाथ से गाण्डीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है, इसलिये मै खड़ा रहने को भी समर्थ नहीं हूँ ।। ३० ।। I can no longer stand; my knees are

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अध्याय १ शलोक २९

अध्याय १ शलोक २९ The Gita – Chapter 1 – Shloka 29 Shloka 29 अर्जुन बोले —– हे कृष्ण ! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजनसमुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीर में कम्प एवं रोमांच हो रहा है

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अध्याय १ शलोक २७,२८

अध्याय १ शलोक २७,२८ The Gita – Chapter 1 – Shloka 27,28 Shloka 27,28 उन उपस्थित सम्पूर्ण बन्धुओं को देखकर वे कुन्तीपुत्र अर्जुन अत्यन्त करुणा से युक्त्त होकर शोक करते हुए यह वचन बोले ।। २७, ।। अर्जुन बोले —– हे कृष्ण ! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजनसमुदाय को देखकर

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अध्याय १ शलोक २६

अध्याय १ शलोक २६ The Gita – Chapter 1 – Shloka 26 Shloka 26 इसके बाद पृथापुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ-चाचों को, दादों-परदादों को, गुरुओं को, मामाओं को, भाइयों-पुत्रों को, पौत्रों को तथा मित्रों को, ससुरों को और सुह्रदों को भी देखा  ।। २६ ।। ARJUNA, gazed upon the army

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