अध्याय १८

अध्याय १८ शलोक  ५

अध्याय १८ शलोक  ५ The Gita – Chapter 18 – Shloka 5 Shloka 5  यज्ञ, दान और तप रूप कर्म त्याग करने के योग्य नहीं है, बल्कि वह तो अवश्य कर्तव्य है ; क्योंकि यज्ञ, दान और तप —-ये तीनों ही कर्म बुद्भिमान् पुरुषों को पवित्र करने वाले हैं ।। ५ ।। Tasks which involve […]

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अध्याय १८ शलोक  ४

अध्याय १८ शलोक  ४ The Gita – Chapter 18 – Shloka 4 Shloka 4  हे पुरुष श्रेष्ठ अर्जुन ! संन्यास और त्याग, इन दोनों में से पहले त्याग के विषय में तू मेरा निश्चय सुन । क्योंकि त्याग सात्विक, राजस और तामस भेद से तीन प्रकार का कहा गया है ।। ४ ।। Now My

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अध्याय १८ शलोक  ३

अध्याय १८ शलोक  ३ The Gita – Chapter 18 – Shloka 3 Shloka 3  कई एक विद्बान् ऐसा कहते हैं कि कर्म मात्र दोषयुक्त्त हैं, इसलिये त्यागने के योग्य हैं और दूसरे विद्बान् यह कहते हैं कि यज्ञ, दान और तप रूप कर्म त्यागने योग्य नहीं हैं ।। ३ ।। It is common for some

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अध्याय १८ शलोक  २

अध्याय १८ शलोक  २ The Gita – Chapter 18 – Shloka 2 Shloka 2  श्रीभगवान् बोले — कितने ही पण्डित जन तो काम्य कर्मों के त्याग को संन्यास समझते हैं तथा दूसरे विचार कुशल पुरुष सह कर्मों के फल के त्याग को त्याग कहते हैं ।। २ ।। The Blessed Lord replied: If one entirely

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अध्याय १८ शलोक  १

अध्याय १८ शलोक  १ The Gita – Chapter 18 – Shloka 1 Shloka 1  अर्जुन बोले ——हे महाबाहो ! हे अन्तर्यामिन् ! हे वासुदेव ! मैं संन्यास और त्याग के तत्व को पृथक्-पृथक् जानना चाहता हूँ ।। १ ।। Arjuna asked the Almighty Krishna: Please explain to me, Dear Lord, what it means to have

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