अध्याय १८

अध्याय १८ शलोक  १५

अध्याय १८ शलोक  १५ The Gita – Chapter 18 – Shloka 15 Shloka 15  मनुष्य मन, वाणी और शरीर से शास्त्रानुकूल अथवा विपरीत जो कुछ भी कर्म करता है —- उसके ये पांचों कारण हैं ।। १५ ।। Whether a being’s means of actions are his body, mind, or speech, all of his actions whether […]

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अध्याय १८ शलोक  १४

अध्याय १८ शलोक  १४ The Gita – Chapter 18 – Shloka 14 Shloka 14  इस विषय में अर्थात् कर्मों की सिद्भि में अधिष्ठान और कर्ता तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के कारण एवं नाना प्रकार की अलग-अलग चेष्टाऍ और वैसे ही पाँचवां हेतु दैव है ।। १४ ।। The Lord described the five causes of action: The

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अध्याय १८ शलोक  १३

अध्याय १८ शलोक  १३ The Gita – Chapter 18 – Shloka 13 Shloka 13  हे महाबाहो ! सम्पूर्ण कर्मों की सिद्भि के ये पांच हेतु कर्मों का अन्त करने के लिये उपाय बतलाने वाले सांख्यशास्त्र में कहे गये हैं, उनको तू मुझ से भली भाँति जान ।। १३ ।। O Mighty-armed Arjuna, learn and realize from

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अध्याय १८ शलोक  १२

अध्याय १८ शलोक  १२ The Gita – Chapter 18 – Shloka 12 Shloka 12  कर्म फल का त्याग न करने वाले मनुष्यों के कर्मों का तो अच्छा, बुरा और मिला हुआ ऐसे तीन प्रकार का फल मरने के पश्चात् अवश्य होता है, किंतु कर्म फल का त्याग कर देने वाले मनुष्यों के कर्मों का फल

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अध्याय १८ शलोक  ११

अध्याय १८ शलोक  ११ The Gita – Chapter 18 – Shloka 11 Shloka 11  क्योंकि शरीरधारी किसी भी मनुष्य के द्वारा सम्पूर्णता से सब कर्मों का त्याग किया जाना शक्य नहीं है ; इसलिय जो कर्म फल का त्यागी है, वही त्यागी है — यह कहा जाता है ।। ११ ।। Understand, Best of Men

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अध्याय १८ शलोक  १०

अध्याय १८ शलोक  १० The Gita – Chapter 18 – Shloka 10 Shloka 10  जो मनुष्य अकुशल कर्म से तो द्बेष नहीं करता और कुशल कर्म में आसक्त्त नहीं होता —- वह शुद्भ सत्वगुण से युक्त्त पुरुष संशयरहित, बुद्भिमान् और सच्चा त्यागी है ।। १० ।। This wiseman, whose doubts no longer exist, who has

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अध्याय १८ शलोक  ९

अध्याय १८ शलोक  ९ The Gita – Chapter 18 – Shloka 9 Shloka 9  हे अर्जुन ! जो शास्त्र विहित कर्म करना कर्तव्य है — इसी भाव से आसक्ति और फल का त्याग करके किया जाता है —– वही सात्विक त्याग माना गया है ।। ९ ।। But, O son of Kunti, he who partakes

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अध्याय १८ शलोक  ८

अध्याय १८ शलोक  ८ The Gita – Chapter 18 – Shloka 8 Shloka 8  जो कुछ कर्म है, वह सब दुःख रूप ही है —– ऐसा समझ कर यदि कोई शारीरिक क्लेश के भय से कर्तव्य कर्मों का त्याग कर दे, तो वह ऐसा राजस त्याग करके त्याग के फल को किसी प्रकार भी नहीं

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अध्याय १८ शलोक  ७

अध्याय १८ शलोक  ७ The Gita – Chapter 18 – Shloka 7 Shloka 7  ( निषिद्ब और काम्य कर्मों का तो स्वरूप से त्याग करना उचित ही है ) परन्तु नियत कर्म का स्वरूप से त्याग उचित नहीं है । इसलिये मोह के कारण उसका त्याग कर देना तामस त्याग कहा गया है ।। ७

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अध्याय १८ शलोक  ६

अध्याय १८ शलोक  ६ The Gita – Chapter 18 – Shloka 6 Shloka 6  इसलिये हे पार्थ ! इन यज्ञ, दान और तपरूप कर्मों को तथा और भी सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को आसक्ति और फलों का त्याग करके अवश्य करना चाहिये, यह मेरा निश्चय किया हुआ उत्तम मत है ।। ६ ।। However, dear Arjuna,

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