अध्याय १८

अध्याय १८ शलोक ३५

अध्याय १८ शलोक  ३५ The Gita – Chapter 18 – Shloka 35 Shloka 35  हे पार्थ ! दुष्ट बुद्भि वाला मनुष्य जिस धारण शक्त्ति के द्वारा निद्रा, भय, चिन्ता और दुःख को तथा उन्मत्तता को भी नहीं छोड़ता अर्थात् धारण किये रहता है —- वह धारण शक्त्ति तामसी है ।। ३५ ।। That steadiness which […]

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अध्याय १८ शलोक ३४

अध्याय १८ शलोक  ३४ The Gita – Chapter 18 – Shloka 34 Shloka 34  परन्तु हे पृथापुत्र अर्जुन ! फल की इच्छा वाला मनुष्य जिस धारण शक्त्ति के द्वारा अत्यन्त आसक्त्ति से धर्म, अर्थ और कामों को धारण करता है, वह धारण शक्त्ति राजसी है ।। ३४ ।। But Arjuna, he who uses his steadiness

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अध्याय १८ शलोक ३३

अध्याय १८ शलोक  ३३ The Gita – Chapter 18 – Shloka 33 Shloka 33  हे पार्थ ! जिस अव्यभिचारिणी धारण शक्त्ति से मनुष्य ध्यान योग के द्वारा मन, प्राण और इन्द्रियों की क्रियाओं को धारण करता है ; वह धृति सात्विकी है ।। ३३ ।। O Partha, while practising Yoga and full concentration on Me

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अध्याय १८ शलोक ३२

अध्याय १८ शलोक  ३२ The Gita – Chapter 18 – Shloka 32 Shloka 32  हे अर्जुन ! जो तमोगुण से घिरी हुई बुद्भि अधर्म को भी ‘यह धर्म है’ ऐसा मान लेती है तथा इसी प्रकार अन्य सम्पूर्ण पदार्थों को भी विपरीत मान लेती है, वह बुद्भि तामसी है ।। ३२ ।। O Arjuna, there

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अध्याय १८ शलोक ३१

अध्याय १८ शलोक  ३१ The Gita – Chapter 18 – Shloka 31 Shloka 31  हे पार्थ ! मनुष्य जिस बुद्भि के द्वारा धर्म और अधर्म को तथा कर्तव्य और अकर्तव्य को भी यथार्थ नहीं जानता, वह बुद्भि राजसी है ।। ३१ ।। The wisdom which is characterized by a lack of understanding of what should

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अध्याय १८ शलोक ३०

अध्याय १८ शलोक  ३० The Gita – Chapter 18 – Shloka 30 Shloka 30  हे पार्थ ! जो बुद्भि प्रवृति मार्ग और निवृत्ति मार्ग को कर्तव्य और अकर्तव्य को, भय और अभय को तथा बन्धन और मोक्ष को यथार्थ जानती है — वह बुद्भि सात्विकी है ।। ३० ।। Pure and SAATVIC wisdom, O Partha,

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अध्याय १८ शलोक २९

अध्याय १८ शलोक  २९ The Gita – Chapter 18 – Shloka 29 Shloka 29  हे धनञ्जय ! अब तू बुद्भि का और धृति का भी गुणों के अनुसार तीन प्रकार का भेद मेरे द्वारा सम्पूर्णता से विभाग पूर्वक कहा जाने वाला सुन ।। २९ ।। Now Arjuna, hear and understand as I reveal to you

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अध्याय १८ शलोक २८

अध्याय १८ शलोक  २८ The Gita – Chapter 18 – Shloka 28 Shloka 28  जो कर्ता अयुक्त्त, शिक्षा से रहित, घमंडी, धूर्त और दूसरों की जीविका का नाश करने वाला तथा शोक करने वाला, आलसी और दीर्घ सूत्री है —- वह तामस कहा जाता है ।। २८ ।। A person whose behaviour is marked by

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अध्याय १८ शलोक २७

अध्याय १८ शलोक  २७ The Gita – Chapter 18 – Shloka 27 Shloka 27  जो कर्ता आसक्ति से युक्त्त, कर्मों के फल को चाहने वाला और लोभी है तथा दूसरों को कष्ट देने के स्वभाव वाला, अशुद्भाचारी और हर्ष-शोक से लिप्त है — वह राजस कहा गया है ।। २७ ।। The worker who is

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अध्याय १८ शलोक २६

अध्याय १८ शलोक  २६ The Gita – Chapter 18 – Shloka 26 Shloka 26  जो कर्ता सड्गरहित, अहंकार के वचन न बोलने वाला, धैर्य और उत्साह से युक्त्त तथा कार्य के सिद्ध होने और न होने में हर्ष-शोकादि विकारों से रहित है —- वह सात्विक कहा जाता है ।। २६ ।। A man who is

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