अध्याय १८

अध्याय १८ शलोक  ६८

अध्याय १८ शलोक  ६८ The Gita – Chapter 18 – Shloka 68 Shloka 68  जो पुरुष मुझ में परम प्रेम करके इस परम रहस्य युक्त्त गीता शास्त्र को मेरे भक्त्तों में कहेगा, वह मुझको ही प्राप्त होगा —– इसमे कोई संदेह नहीं ।। ६८ ।। However O Bharata, he who preaches My divine teachings to […]

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अध्याय १८ शलोक  ६७

अध्याय १८ शलोक  ६७ The Gita – Chapter 18 – Shloka 67 Shloka 67  तुझे यह गीता रूप रहस्य मय उपदेश किसी भी काल में न तो तप रहित मनुष्य से कहना चाहिये, न भक्त्ति रहित से और न बिना सुनने की इच्छा वाले से ही कहना चाहिये ; तथा जो मुझ में दोष दृष्टि

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अध्याय १८ शलोक  ६६

अध्याय १८ शलोक  ६६ The Gita – Chapter 18 – Shloka 66 Shloka 66  सम्पूर्ण धर्मों को अर्थात् सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझ में त्याग कर तू केवल एक मुझ सर्व शक्त्तिमान् सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा । मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त्त कर दूंगा, तू शोक मत कर ।। ६६

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अध्याय १८ शलोक  ६५

अध्याय १८ शलोक  ६५ The Gita – Chapter 18 – Shloka 65 Shloka 65  हे अर्जुन ! तू मुझ में मन वाला हो, मेरा भक्त्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो और मुझको प्रणाम कर । ऐसा करने से तू मुझे ही प्राप्त होगा, यह मैं तुझ से सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ ; क्योंकि तू

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अध्याय १८ शलोक  ६४

अध्याय १८ शलोक  ६४ The Gita – Chapter 18 – Shloka 64 Shloka 64  सम्पूर्ण गोपनीयों से अति गोपनीय मेरे परम रहस्ययुक्त्त वचन को तू फिर भी सुन । तू मेरा अतिशय प्रिय हैं, इससे यह परम हित कारक वचन मैं तुमसे कहूँगा ।। ६४ ।। O Arjuna, because of My deep love and respect

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अध्याय १८ शलोक  ६३

अध्याय १८ शलोक  ६३ The Gita – Chapter 18 – Shloka 63 Shloka 63  इस प्रकार यह गोपनीय से भी अति गोपनीय ज्ञान मैंने तुम से कह दिया । अब तू इस रहस्य युक्त्त ज्ञान को पूर्णतया भली-भाँति विचार कर जैसे चाहता है, वैसे ही कर ।। ६३ ।। O Arjuna, I have revealed to

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अध्याय १८ शलोक  ६२

अध्याय १८ शलोक  ६२ The Gita – Chapter 18 – Shloka 62 Shloka 62  हे भारत ! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में जा । उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शान्ति को तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा ।। ६२ ।। O Son of Kunti, willingly surrender

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अध्याय १८ शलोक  ६१

अध्याय १८ शलोक  ६१ The Gita – Chapter 18 – Shloka 61 Shloka 61  हे अर्जुन ! शरीर रूप यन्त्र में आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियों को अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी  माया से उनके कर्मों के अनुसार भ्रमण करता हुआ सब प्राणियों के ह्रदय में स्थित है ।। ६१ ।। The Blessed Lord explained: O Arjuna, God dwells

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अध्याय १८ शलोक ६०

अध्याय १८ शलोक  ६० The Gita – Chapter 18 – Shloka 60 Shloka 60  हे कुन्ती पुत्र ! जिस कर्म को तू मोह के कारण करना नहीं चाहता, उसको भी अपने पूर्वकृत स्वाभाविक कर्म से बंधा हुआ परवश होकर करेगा ।। ६० ।। Although you do not want to accomplish your prescribed task, O Arjuna,

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अध्याय १८ शलोक ५९

अध्याय १८ शलोक  ५९ The Gita – Chapter 18 – Shloka 59 Shloka 59  जो तू अहंकार का आश्रय लेकर यह मान रहा है कि ‘मैं युद्ध नहीं करूँगा’ तेरा यह निश्चय मिथ्या है ; क्योंकि तेरा स्वभाव तुझे जबर्दस्ती युद्ध में लगा देगा ।। ५९ ।। If you do not fight the battle which

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