अध्याय १७

अध्याय १७ शलोक १८

अध्याय १७ शलोक  १८ The Gita – Chapter 17 – Shloka 18 Shloka 18  जो तप सत्कार, मान और पूजा के लिये तथा अन्य किसी स्वार्थ के लिये भी स्वभाव से या पाखण्ड से किया जाता है, वह अनिश्चित एवं क्षणिक फल वाला तप यहाँ राजस कहा गया है ।। १८ ।। However, My best […]

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अध्याय १७ शलोक १७

अध्याय १७ शलोक  १७ The Gita – Chapter 17 – Shloka 17 Shloka 17  फल को न चाहने वाले योगी पुरुषों द्वारा परम श्रद्बा से किये हुए उस पूर्वोक्त्त तीन प्रकार के तप को सात्विक कहते हैं ।। १७ ।। If these three types of harmony are practised with supreme faith, a pure heart, truthful

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अध्याय १७ शलोक १६

अध्याय १७ शलोक  १६ The Gita – Chapter 17 – Shloka 16 Shloka 16  मन की प्रसन्नता, शान्त भाव, भगवच्चिन्तन करने का स्वभाव, मन का निग्रह, और अन्त:करण के भावों की भली भाँति पवित्रता —-इस प्रकार यह मन सम्बन्धी तप कहा जाता है ।। १६ ।। Peace and tranquility of the mind, harmony and confidence

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अध्याय १७ शलोक १५

अध्याय १७ शलोक  १५ The Gita – Chapter 17 – Shloka 15 Shloka 15  जो उद्बेग न करने वाला, प्रिय और हित कारक एवं यथार्थ भाषण है तथा जो वेद शास्त्रों के पठन का एवं परमेश्वर के नाम जप का अभ्यास है —– वही वाणी सम्बन्धी तप कहा जाता है ।। १५ ।। Speaking only

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अध्याय १७ शलोक १४

अध्याय १७ शलोक  १४ The Gita – Chapter 17 – Shloka 14 Shloka 14  देवता, ब्राह्मण, गुरु और ज्ञानीजनों का पूजन, पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा —–यह शरीर सम्बन्धी तप कहा जाता है ।। १४ ।। The worship of the Gods of Light; of the twice-born; worship and respect given to the religious teacher and

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अध्याय १७ शलोक १३

अध्याय १७ शलोक  १३ The Gita – Chapter 17 – Shloka 13 Shloka 13  शास्त्र विधि से हीन, अन्नदान से रहित, बिना मन्त्रों के, बिना दक्षिणा और बिना श्रद्धा के किये जाने वाले यज्ञ को तामस यज्ञ कहते हैं ।। १३ ।। Finally, My dear Devotee, the lowest type of sacrifice that exists is that

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अध्याय १७ शलोक १२

अध्याय १७ शलोक  १२ The Gita – Chapter 17 – Shloka 12 Shloka 12  परन्तु हे अर्जुन ! केवल दम्भाचरण के लिये अथवा फल को भी दृष्टि में रखकर जो यज्ञ किया जाता है, उस यज्ञ को तू राजस जान ।। १२ ।। However, O Bharata, a sacrifice that is done purely with the intention

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अध्याय १७ शलोक ११

अध्याय १७ शलोक  ११ The Gita – Chapter 17 – Shloka 11 Shloka 11  जो शास्त्र विधि से नियत, यज्ञ करना ही कर्तव्य है —- इस प्रकार मन को समाधान करके, फल न चाहने वाले पुरुषों द्वारा किया जाता है, वह सात्विक है ।। ११ ।। A pure sacrifice is one where the religious offerings

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अध्याय १७ शलोक  १०

अध्याय १७ शलोक  १० The Gita – Chapter 17 – Shloka 10 Shloka 10  जो भोजन अधपका, रस रहित, दुर्गन्ध युक्त्त बासी और उच्छिष्ट है तथा जो अपवित्र भी है, वह भोजन तामस पुरुष को प्रिय होता है ।। १० ।। Those people who strive on darkness and evil, eat foods that are impure, often

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अध्याय १७ शलोक  ९

अध्याय १७ शलोक  ९ The Gita – Chapter 17 – Shloka 9 Shloka 9  कड़वे, खट्टे, लवण युक्त्त् बहुत गरम तीखे, रूखे, दाहकारक और दुःख, चिन्ता तथा रोगों को उत्पन्न करने वाले आहार अर्थात् भोजन करने के पदार्थ राजस पुरुष को प्रिय होते हैं ।। ९ ।। The foods that appeal to the passionate people

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