अध्याय १७

अध्याय १७ शलोक २८

अध्याय १७ शलोक  २८ The Gita – Chapter 17 – Shloka 28 Shloka 28  हे अर्जुन ! बिना श्रद्बा जे के किया हुआ हवन, दिया हुआ दान एवं तपा हुआ तप और जो कुछ भी किया हुआ शुभ कर्म है —– वह समस्त ‘असत्’ —– इस प्रकार कहा जाता है ; इसलिये वह न तो […]

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अध्याय १७ शलोक २७

अध्याय १७ शलोक  २७ The Gita – Chapter 17 – Shloka 27 Shloka 27  तथा यज्ञ, तप और दान में जो स्थिति है, वह भी ‘सत्’ इस प्रकार कही जाती है और उस परमात्मा  के लिये किया हुआ कर्म निश्चय पूर्वक सत् ऐसे कहा जाता है ।। २७ ।। Everlasting faithfulness is Spiritual Sacrifice, Self-harmony,

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अध्याय १७ शलोक २६

अध्याय १७ शलोक  २६ The Gita – Chapter 17 – Shloka 26 Shloka 26  ‘सत्’ ——-इस प्रकार यह परमात्मा का नाम सत्य भाव में और श्रेष्ठ भाव में प्रयोग किया जाता है तथा हे पार्थ ! उत्तम कर्म में भी ‘सत्’ शब्द का प्रयोग किया जाता है ।। २६ ।। Sat (derived from term Satya),

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अध्याय १७ शलोक २५

अध्याय १७ शलोक  २५ The Gita – Chapter 17 – Shloka 25 Shloka 25  तत् अर्थात् ‘तत्’ नाम से कहे जाने वाले परमात्मा का ही यह सब है, इस भाव से फल को न चाहकर नाना प्रकार की यज्ञ तपरूप क्रियाएँ तथा दानरूप क्रियाएँ कल्याण की इच्छा वाले पुरुषों द्वारा की जाती हैं ।। २५

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अध्याय १७ शलोक २४

अध्याय १७ शलोक  २४ The Gita – Chapter 17 – Shloka 24 Shloka 24  इसलिये वेद मन्त्रों का उच्चारण करने वाले श्रेष्ठ पुरुषों की शास्त्र विधि से नियत यज्ञ, दान और तप रूप क्रियाएँ सदा ‘ओउम्’ इस परमात्मा के नाम को उच्चारण करके ही आरम्भ होती हैं ।। २४ ।। Therefore, dear Arjuna, he who

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अध्याय १७ शलोक २३

अध्याय १७ शलोक  २३ The Gita – Chapter 17 – Shloka 23 Shloka 23  ओउम्, तत्, सत् —- ऐसे यह तीन प्रकार का सच्चिदानन्दधन ब्रह्म का नाम कहा है ; उसी से सृष्टि के आदि काल में ब्राह्मण और वेद तथा यज्ञादि रचे गये ।। २३ ।। AUM, TAT, SAT (literal translation: the Lord who

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अध्याय १७ शलोक २२

अध्याय १७ शलोक  २२ The Gita – Chapter 17 – Shloka 22 Shloka 22  जो दान बिना सत्कार के एवं तिरस्कार पूर्वक अयोग्य देश काल में और कुपात्र के प्रति दिया जाता है, वह दान तामस कहा गया है ।। २२ ।। A gift that is given to an unworthy (evil) person, at an improper

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अध्याय १७ शलोक २१

अध्याय १७ शलोक  २१ The Gita – Chapter 17 – Shloka 21 Shloka 21  किंतु जो दान क्लेश पूर्वक तथा प्रत्युपकार के  प्रयोजन से अथवा फल को दृष्टि में रख कर फिर दिया जाता है, वह दान राजस कहा गया है ।। २१ ।। However Arjuna, when the gift is given with the expectation of

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अध्याय १७ शलोक २०

अध्याय १७ शलोक  २० The Gita – Chapter 17 – Shloka 20 Shloka 20  दान देना ही कर्तव्य है —- ऐसे भाव से जो दान देश तथा काल और पात्र के प्राप्त होने पर उपकार न करने वाले के प्रति दिया जाता है, वह दान सात्विक कहा गया है ।। २० ।। O Arjuna, hear

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अध्याय १७ शलोक १९

अध्याय १७ शलोक  १९ The Gita – Chapter 17 – Shloka 19 Shloka 19  जो तप मूढ़ता पूर्वक हठ से, मन, वाणी और शरीर की पीड़ा के सहित अथवा दूसरे के अनिष्ट करने के लिये किया जाता है —- वह तप तामस कहा गया है ।। १९ ।। When self-control is incorrectly performed by a

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