अध्याय १५

अध्याय १५ शलोक  १०

अध्याय १५ शलोक १० The Gita – Chapter 15 – Shloka 10 Shloka 10  शरीर को छोड़ कर जाते हुए को अथवा शरीर में स्थित हुए को अथवा विषयों को भोगते हुए को इस प्रकार तीनों गुणों से युक्त्त हुए को भी अज्ञानी जन नहीं जानते, केवल ज्ञान रूप नेत्रों वाले विवेक शील ज्ञानी ही […]

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अध्याय १५ शलोक  ९

अध्याय १५ शलोक  ९ The Gita – Chapter 15 – Shloka 9 Shloka 9  यह जीवात्मा श्रोत्र, चक्षु और त्वचा को तथा रसना, घ्राण और मन को आश्रय करके ——अर्थात् इन सब के सहारे से ही विषयों का सेवन करता है ।। ९ ।। Therefore, O Arjuna, after I enter the body of a particular being

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अध्याय १५ शलोक  ८

अध्याय १५ शलोक  ८ The Gita – Chapter 15 – Shloka 8 Shloka 8  वायु गन्ध के स्थान से गन्ध को जैसे ग्रहण करके ले जाता है, वैसे ही देहादि का स्वामी जीवात्मा भी जिस शरीर का त्याग करता है, उससे इन मन सहित इन्द्रियों को ग्रहण करके फिर जिस शरीर को प्राप्त होता है

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अध्याय १५ शलोक  ७

अध्याय १५ शलोक  ७ The Gita – Chapter 15 – Shloka 7 Shloka 7  इस देह में यह सनातन जीवात्मा मेरा ही अंश है और वही इन प्रकृति में स्थित मन और पाँचों इन्द्रियों को आकर्षण करता है ।। ७ ।। The Blessed Lord confided: O Arjuna, in this world, a certain fraction of My

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अध्याय १५ शलोक  ६

अध्याय १५ शलोक  ६ The Gita – Chapter 15 – Shloka 6 Shloka 6  जिस परम पद को प्राप्त होकर मनुष्य लौट कर संसार में नहीं आते, उस स्वयं प्रकाश परम पद को न सूर्य प्रकाशित कर सकता है, न चन्द्रमा और न अग्नि ही ; वही मेरा परम धाम है ।। ६ ।। That

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अध्याय १५ शलोक  ५

अध्याय १५ शलोक  ५ The Gita – Chapter 15 – Shloka 5 Shloka 5  जिसका मान और मोह नष्ट हो गया है, जिन्होंने आसक्ति रूप दोष को जीत लिया है, जिनकी परमात्मा के स्वरूप में नित्य स्थिति है और जिनकी कामनाएँ पुर्ण रूप से नष्ट हो गयी है —–वे सुख-दुःख नामक द्बन्द्बों से विमुक्त्त ज्ञानी

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अध्याय १५ शलोक  ४

अध्याय १५ शलोक  ४ The Gita – Chapter 15 – Shloka 4 Shloka 4  उसके पश्चात् उस परम पद रूप परमेश्वर को भली भाँति खोजना चाहिये, जिसमें गये हुए पुरुष फिर लौट कर संसार में नहीं आते और जिस परमेश्वर से इस पुरातन संसार वृक्ष की प्रवृति विस्तार को प्राप्त हुई है, उसी आदि पुरुष

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अध्याय १५ शलोक  ३

अध्याय १५ शलोक  ३ The Gita – Chapter 15 – Shloka 3 Shloka 3  इस संसार वृक्ष का स्वरूप जैसा कहा है ; वैसा यहाँ विचार काल में नहीं पाया जाता ; क्योंकि न तो इसका आदि है और न अन्त है तथा न इसकी अच्छी प्रकार से स्थिति ही है इस लिये इस अहंता,

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अध्याय १५ शलोक  २

अध्याय १५ शलोक  २ The Gita – Chapter 15 – Shloka 2 Shloka 2  उस संसार वृक्ष की तीनों गुणों रूप जल के द्वारा बढ़ी हुई एवं विषय भोग रूप कोपलों वाली देव, मनुष्य और तिर्यक् आदि योनि रूप शाखाएँ नीचे ऊपर सर्वत्र फैली हुई हैं तथा मनुष्य लोक में क़र्मो के अनुसार बाँधने वाली

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अध्याय १५ शलोक  १

अध्याय १५ शलोक  १ The Gita – Chapter 15 – Shloka 1 Shloka 1  श्री भगवान् बोले —–आदिपुरुषपरमेश्वर रूप मूल वाले और ब्रह्मा रूप मुख्य शाखा वाले जिस संसार रूप पीपल के वृक्ष को अविनाशी* कहते हैं, तथा वेद जिसक पत्ते कहे गये हैं —-उस संसार रूप वृक्ष को जो पुरुष मूल सहित तत्व से

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