अध्याय १५

अध्याय १५ शलोक  २०

अध्याय १५ शलोक  २० The Gita – Chapter 15 – Shloka 20 Shloka 20  हे निष्पाप अर्जुन ! इस प्रकार यह अति रहस्ययुक्त्त गोपनीय शास्त्र मेरे द्वारा कहा गया, इसको तत्व से जान कर मनुष्य ज्ञानवान् और कृतार्थ हो जाता है ।। २० ।। Dear Arjuna, I have thus revealed to you, the most secret […]

अध्याय १५ शलोक  २० Read More »

अध्याय १५ शलोक  १९

अध्याय १५ शलोक  १९ The Gita – Chapter 15 – Shloka 19 Shloka 19  भारत ! जो ज्ञानी पुरुष मुझको इस प्रकार तत्व से पुरुषोतम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार से निरन्तर मुझ वासुदेव परमेश्वर को ही भजता है ।। १९ ।। He who has a clear vision and is constantly occupied with

अध्याय १५ शलोक  १९ Read More »

अध्याय १५ शलोक  १८

अध्याय १५ शलोक  १८ The Gita – Chapter 15 – Shloka 18 Shloka 18  क्योंकि मैं नाशवान् जड. वर्ग क्षेत्र से तो सर्वथा अतीत हूँ और अविनाशी जीवात्मा से भी उत्तम हूँ, इसलिये लोक में और वेद में भी पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूँ ।। १८ ।। Lord Krishna explained: Because I am beyond all

अध्याय १५ शलोक  १८ Read More »

अध्याय १५ शलोक  १७

अध्याय १५ शलोक  १७ The Gita – Chapter 15 – Shloka 17 Shloka 17  इन दोनों से उत्तम पुरुष तो अन्य ही है, जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है एवं अविनाशी परमेश्वर और परमात्मा इस प्रकार गया है ।। १७ ।। However dear Arjuna, there is another spirit that is the

अध्याय १५ शलोक  १७ Read More »

अध्याय १५ शलोक  १६

अध्याय १५ शलोक  १६ The Gita – Chapter 15 – Shloka 16 Shloka 16  इस संसार में नाशवान् और अविनाशी भी ये दो प्रकार के पुरुष हैं । इनमे सम्पूर्ण भूत प्राणियों के शरीर तो नाशवान् और जीवात्मा अविनाशी कहा जाता है ।। १६ ।। There are two souls or spirits in this universe O

अध्याय १५ शलोक  १६ Read More »

अध्याय १५ शलोक  १५

अध्याय १५ शलोक  १५ The Gita – Chapter 15 – Shloka 15 Shloka 15  मैं ही सब प्राणियों के ह्रदय में अन्तर्यामी रूप से स्थित हूँ तथा मुझ से ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन होता है और सब वेदों द्वारा मैं ही जानने के योग्य हूँ तथा वेदान्त का कर्ता और वेदों को जानने वाला

अध्याय १५ शलोक  १५ Read More »

अध्याय १५ शलोक  १४

अध्याय १५ शलोक  १४ The Gita – Chapter 15 – Shloka 14 Shloka 14  मैं ही सब प्राणियों के शरीर के स्थित रहने वाला प्राण और अपान से संयुक्त्त वैश्वानर अग्निरूप होकर चार प्रकार के अन्न को पचाता हूँ ।। १४ ।। O Arjuna, at the same time, I also become the fire of life

अध्याय १५ शलोक  १४ Read More »

अध्याय १५ शलोक  १३

अध्याय १५ शलोक  १३ The Gita – Chapter 15 – Shloka 13 Shloka 13  और मैं ही पृथ्वी में प्रवेश करके अपनी शक्त्ति से सब भूतों को धारण करता हूँ और रस स्वरूप अर्थात् अमृत मय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण ओषधियों को अर्थात् वनस्पतियों को पुष्ट करता हूँ ।। १३ ।। Upon entering into this world

अध्याय १५ शलोक  १३ Read More »

अध्याय १५ शलोक  १२

अध्याय १५ शलोक  १२ The Gita – Chapter 15 – Shloka 12 Shloka 12  सूर्य में स्थित जो तेज सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है तथा जो तेज चन्द्रमा में है और जो अग्नि में है —उसको तू मेरा ही तेज जान ।। १२ ।। The Blessed Lord spoken in His Divine Voice: Arjuna, you

अध्याय १५ शलोक  १२ Read More »

अध्याय १५ शलोक  ११

अध्याय १५ शलोक  ११ The Gita – Chapter 15 – Shloka 11 Shloka 11  यत्न करने वाले योगी जन भी अपने ह्रदय में स्थित इस आत्मा को तत्व से जानते हैं ; किंतु जिन्होंने अपने अन्त:करण को शुद्ध नहीं किया है, ऐसे अज्ञानी जन तो यत्न करते रहने पर भी इस आत्मा को नहीं जानते

अध्याय १५ शलोक  ११ Read More »

Scroll to Top