अध्याय १४

अध्याय १४ शलोक ७

अध्याय १४ शलोक ७ The Gita – Chapter 14 – Shloka 7 Shloka 7  हे अर्जुन ! राग रूप रजोगुण को कामना और आसक्ति से उत्पन्न जान । वह इस जीवात्मा को कर्मो के और उनके फल के सम्बन्ध से बांधता है ।। ७ ।। RAJAS, dear Arjuna, is that natural element representing passion which […]

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अध्याय १४ शलोक ६

अध्याय १४ शलोक ६ The Gita – Chapter 14 – Shloka 6 Shloka 6  हे निष्पाप ! उन तीनों गुणों में सत्वगुण तो निर्मल होने के कारण प्रकाश करने वाला और विकार रहित है, वह सुख के सम्बन्ध से और ज्ञान के सम्बन्ध से अर्थात् उसके अभिमान से बांधता है ।। ६ ।। Arjuna, understand

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अध्याय १४ शलोक ५

अध्याय १४ शलोक ५ The Gita – Chapter 14 – Shloka 5 Shloka 5  हे अर्जुन ! सत्वगुण, रजोगुण, और तमोगुण —-ये प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुण अविनाशी जीवात्मा को शरीर में बांधते हैं ।। ५ ।। Arjuna, that NATURE is made of three parts, namely: SATTVA (the light representing goodness); RAJAS (fire representing passion),

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अध्याय १४ शलोक ४

अध्याय १४ शलोक ४ The Gita – Chapter 14 – Shloka 4 Shloka 4  हे अर्जुन ! नाना प्रकार की सब योनियों में जितनी मूर्तियां अर्थात् शरीर धारी प्राणी उत्पन्न होते हैं, प्रकृति तो उन सब की गर्भ धारण करने वाली माता है और मै बीज को स्थापन करने वाला पिता हूँ ।। ४ ।।

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अध्याय १४ शलोक ३

अध्याय १४ शलोक ३ The Gita – Chapter 14 – Shloka 3 Shloka 3  हे अर्जुन ! मेरी महत्-ब्रह्म रूप मूल प्रकृति सम्पूर्ण भूतों की योनि है अर्थात् गर्भाधान का स्थान है और मैं उस योनि में चेतन समुदाय रूप गर्भ को स्थापन करता हूँ । उस जड़ चेतन के संयोग से सब भूतों की

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अध्याय १४ शलोक २

अध्याय १४ शलोक  २ The Gita – Chapter 14 – Shloka 2 Shloka 2  इस ज्ञान को आश्रय करके अर्थात धारण करके मेरे स्वरूप को प्राप्त हुए पुरुष सृष्टि के आदि में पुन: उत्पन्न नहीं होते और प्रलय काल में भी व्याकुल नहीं होते ।। २ ।। By fully learning, understanding and practising this wisdom,

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अध्याय १४ शलोक १

अध्याय १४ शलोक १ The Gita – Chapter 14 – Shloka 1 Shloka 1  श्रीभगवान् बोले —-ज्ञानों में भी अति उत्तम उस परम ज्ञान को मैं फिर कहूँगा, जिसको जानकर सब मुनि जन इस संसार से मुक्त्त होकर परम सिद्भि को प्राप्त हो गये हैं ।। १ ।। The blessed Lord spoke: Now Arjuna, I

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