अध्याय १४

अध्याय १४ शलोक १७

अध्याय १४ शलोक १७ The Gita – Chapter 14 – Shloka 17 Shloka 17  सत्वगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है और रजोगुण से निस्संदेह लोभ तथा तमोगुण से प्रमाद और मोह उत्पन्न होते है और अज्ञान भी होता है ।। १७ ।। From the SATTVIC state of human nature one receives wisdom, from the RAJAS […]

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अध्याय १४ शलोक १६

अध्याय १४ शलोक १६ The Gita – Chapter 14 – Shloka 16 Shloka 16  श्रेष्ठ कर्म का तो सात्विक अर्थात् सुख, ज्ञान और वैराग्यादि निर्मल फल कहा है ; राजस कर्म का फल दुःख एवं तामस कर्म का फल अज्ञान कहा है ।। १६ ।। The purity of SATTVA is characterized by the rewards that

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अध्याय १४ शलोक १५

अध्याय १४ शलोक १५ The Gita – Chapter 14 – Shloka 15 Shloka 15  रजोगुण के बढ़ने पर मृत्यु को प्राप्त होकर कर्मों की आसक्ति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है ; तथा तमोगुण के बढ़ने पर मरा हुआ मनुष्य कीट, पशु आदि मूढ़ योनियों में उत्पन्न होता है ।। १५ ।। Should a person

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अध्याय १४ शलोक १४

अध्याय १४ शलोक १४ The Gita – Chapter 14 – Shloka 14 Shloka 14  जब यह गुण सत्वगुण की वृद्भि में मृत्यु को प्राप्त होता है, तब तो उत्तम कार्य करने वालों के निर्मल दिव्य स्वर्गादि लोकों को प्राप्त होता है ।। १४ ।। If a being is SATTVIC at the time that his soul

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अध्याय १४ शलोक १३

अध्याय १४ शलोक १३ The Gita – Chapter 14 – Shloka 13 Shloka 13  हे अर्जुन ! तमोगुण के बढ़ने पर अन्त:करण और इन्द्रियों में अप्रकाश, कर्तव्य कर्मों में अप्रवृति और प्रमाद अर्थात् व्यर्थ चेष्टा और निद्रादि, अन्त:करण की मोहिनी वृतियाँ — ये सब ही उत्पन्न होते हैं ।। १३ ।। Dullness, inactivity, laziness, negligence,

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अध्याय १४ शलोक १२

अध्याय १४ शलोक १२ The Gita – Chapter 14 – Shloka 12 Shloka 12  हे अर्जुन ! रजोगुण के बढ़ने पर लोभ, प्रवृत्ति, स्वार्थ बुद्भि से कर्मों का सकाम भाव से आरम्भ, अशान्ति और विषय भोगों की लालसा ——ये सब उत्पन्न होते हैं ।। १२ ।। When the RAJAS GUNA has taken over a being,

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अध्याय १४ शलोक ११

अध्याय १४ शलोक ११ The Gita – Chapter 14 – Shloka 11 Shloka 11  जिस समय इस देह में तथा अन्त:करण और इन्द्रियों में चेतनता और विवेक शक्त्ति उत्पन्न होती है, उस समय ऐसा जानना चाहिये कि सत्वगुण बढ़ा है ।। ११ ।। When the light of true knowledge and wisdom sorrounds and comes forth

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अध्याय १४ शलोक १०

अध्याय १४ शलोक १० The Gita – Chapter 14 – Shloka 10 Shloka 10  हे अर्जुन ! रजोगुण और तमोगुण को दबा कर सत्वगुण, तत्वगुण और तमोगुण को दबा कर रजोगुण, वैसे ही सत्वगुण और रजोगुण को दबा कर तमोगुण होता है अर्थात् बढ़ता है ।। १० ।। At times O Arjuna, the first element

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अध्याय १४ शलोक ९

अध्याय १४ शलोक ९ The Gita – Chapter 14 – Shloka 9 Shloka 9  हे अर्जुन ! सत्वगुण सुख में लगाता है और रजोगुण कर्म में तथा तमोगुण तो ज्ञान को ढककर प्रमाद में भी लगाता है ।। ९ ।। In reality O son of Kunti, SATTVA (or Goodness) binds one to happiness; RAJAS leads

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अध्याय १४ शलोक ८

अध्याय १४ शलोक ८ The Gita – Chapter 14 – Shloka 8 Shloka 8  हे अर्जुन सब देहाभिमानियों को मोहित करने वाले तमोगुण को तो अज्ञान से उत्पन्न जान । वह इस जीवात्मा को प्रमाद, आलस्य और निद्रा के द्वारा बांधता है ।। ८ ।। But you should also know O Arjuna, that darkness and

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