अध्याय १४

अध्याय १४ शलोक २७

अध्याय १४ शलोक  २७ The Gita – Chapter 14 – Shloka 27 Shloka 27  क्योंकि उस अविनाशी परब्रह्म का और अमृत का तथा नित्य धर्म का और अखण्ड एक रस आनन्द का आश्रय मैं हूँ ।। २७ ।। I am the abode of Brahman, the immortal, the immutable, the eternal (ever-lasting) dharma and absolute bliss. […]

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अध्याय १४ शलोक २६

अध्याय १४ शलोक  २६ The Gita – Chapter 14 – Shloka 26 Shloka 26  और जो पुरुष अव्यभिचारी भक्त्ति योग के द्वारा मुझको निरन्तर भजता है, वह भी इन तीनों गुणों को भली भाँति लाँघकर सच्चिदानन्दधन ब्रह्म को प्राप्त होने के लिये योग्य बन जाता है ।। २६ ।। And he who serves Me with

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अध्याय १४ शलोक २५

अध्याय १४ शलोक  २५ The Gita – Chapter 14 – Shloka 25 Shloka 25  जो मान और अपमान में सम है, मित्र और बैरी के पक्ष में भी सम है एवं सम्पूर्ण आरम्भों में कर्तापन के अभिमान से रहित है, वह पुरुष गुणातीत कहा जाता है ।। २५ ।। He who behaves the same in

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अध्याय १४ शलोक २४

अध्याय १४ शलोक  २४ The Gita – Chapter 14 – Shloka 24 Shloka 24  जो निरन्तर आत्म भाव में स्थित, दुःख-सुख को समान समझने वाला, मिट्टी, पत्थर और स्वर्ण में समान भाव वाला, ज्ञानी, प्रिय तथा अप्रिय को एक सा मानने वाला और अपनी निन्दा स्तुति में भी समान भाव वाला है ।। २४ ।।

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अध्याय १४ शलोक २३

अध्याय १४ शलोक  २३ The Gita – Chapter 14 – Shloka 23 Shloka 23  जो साक्षी के सदृश स्थित हुआ गुणों के द्वारा विचलित नहीं किया जा सकता और गुण ही गुणों में बरतते है —-ऐसा समझता हुआ जो सच्चिदानन्दधन परमात्मा में एकीभाव से स्थिर रहता है एवं उस स्थिति से कभी विचलित नहीं होता

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अध्याय १४ शलोक २२

अध्याय १४ शलोक  २२ The Gita – Chapter 14 – Shloka 22 Shloka 22  श्रीभगवान् बोले —–हे अर्जुन ! जो पुरुष सत्वगुण के कार्य रूप प्रकाश को, और रजोगुण के कार्य रूप प्रवृति को तथा तमोगुण के कार्य रूप मोह को भी न तो प्रवृत्त होने पर न तो उनसे करता है और न निवृत्त

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अध्याय १४ शलोक २१

अध्याय १४ शलोक  २१ The Gita – Chapter 14 – Shloka 21 Shloka 21  अर्जुन बोले ! इन तीनों गुणों से अतीत पुरुष किन-किन लक्षणों से युक्त्त होता है और किस प्रकार के आचरणों वाला होता है ; तथा हे प्रभो ! मनुष्य किस उपाय से इन तीनों गुणों से अतीत होता है ।। २१ ।।

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अध्याय १४ शलोक २०

अध्याय १४ शलोक २० The Gita – Chapter 14 – Shloka 20 Shloka 20  यह पुरुष शरीर की, उत्पत्ति के कारण इन तीनो गुणों को उल्लघन करके जन्म, मृत्यु, वृद्बावस्था और सब प्रकार के दु:खों से मुक्त्त हुआ परमानन्द को प्राप्त होता है ।। २० ।। A person whose soul has risen above these three

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अध्याय १४ शलोक १९

अध्याय १४ शलोक १९ The Gita – Chapter 14 – Shloka 19 Shloka 19  जिस समय द्रष्टा तीनों गुणों के अतिरिक्त अन्य किसी को कर्ता नहीं देखता और तीनो गुणों से अत्यन्त परे सच्चिदानन्धन स्वरूप मुझ परमात्मा को तत्व से जानता है, उस समय वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है ।। १९ ।। When

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अध्याय १४ शलोक १८

अध्याय १४ शलोक १८ The Gita – Chapter 14 – Shloka 18 Shloka 18  सत्वगुण में स्थित पुरुष स्वर्गादि उच्च लोकों को जाते हैं ; रजोगुण में स्थित राजस पुरुष मध्य में अर्थात् मनुष्य लोक में ही रहते हैं और तमोगुण के कार्य रूप निद्रा, प्रमाद और आलस्यादि में स्थित तामस पुरुष अधोगति अर्थात् कीट, पशु

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