अध्याय १३

अध्याय १३ शलोक ४

अध्याय १३  शलोक ४ The Gita – Chapter 13 – Shloka 4 Shloka 4  यह क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का तत्व ऋषियों द्वारा बहुत प्रकार से कहा गया है और विविध वेद मन्त्रों द्वारा भी विभाग पूर्वक कहा गया है तथा भली भाँति निश्चय किये हुए युक्त्ति युक्त्त ब्रह्म सूत्र के पदों द्वारा भी कहा गया है […]

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अध्याय १३ शलोक ३

अध्याय १३  शलोक ३ The Gita – Chapter 13 – Shloka 3 Shloka 3  यह क्षेत्र जो और जैसा है तथा जिन विकारों वाला है, और जिस कारण से जो हुआ है तथा क्षेत्रज्ञ भी जो और जिस प्रभाव वाला है —-वह सब संक्षेप में मुझसे सुन ।। ३ ।। What the field is, what it

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अध्याय १३ शलोक २

अध्याय १३  शलोक २ The Gita – Chapter 13 – Shloka 2 Shloka 2  हे अर्जुन ! तू सब क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ अर्थात् जीवात्मा भी मुझे ही जान और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का अर्थात् विकार सहित प्रकृति का और पुरुष का जो तत्व से जानना है, वह ज्ञान है —–ऐसा मेरा मत है ।। २ ।। And you

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अध्याय १३  शलोक १

अध्याय १३  शलोक १ The Gita – Chapter 13 – Shloka 1 Shloka 1  श्रीभगवान् बोले —–हे अर्जुन ! यह शरीर ‘क्षेत्र’ इस नाम से कहा जाता है और इस को जो जानता है, उसको ‘क्षेत्रज्ञ’ इस नाम से उनके तत्व को जानने वाले ज्ञानी जन कहते हैं ।। १ ।। The Blessed Lord said: This

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