अध्याय १३

अध्याय १३ शलोक २४

अध्याय १३ शलोक २४ The Gita – Chapter 13 – Shloka 24 Shloka 24  उस परमात्मा को तो कितने ही मनुष्य तो शुद्ध हुई सूक्ष्म बुद्भि से ध्यान के द्वारा ह्रदय में देखते है, अन्य कितने ही ज्ञान योग के द्वारा और दूसरे कितने ही कर्मयोग के द्वारा देखते हैं अर्थात् प्राप्त करते हैं ।। २४ […]

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अध्याय १३ शलोक २३

अध्याय १३ शलोक २३ The Gita – Chapter 13 – Shloka 23 Shloka 23  इस प्रकार पुरुषों को और गुणों के सहित प्रकृति को जो मनुष्य तत्व से जानता है, वह सब प्रकार से कर्तव्य कर्म करता हुआ भी फिर नहीं जन्मता ।। २३ ।। He who thus knows the Soul and Nature with the

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अध्याय १३ शलोक २२

अध्याय १३ शलोक २२ The Gita – Chapter 13 – Shloka 22 Shloka 22  इस देह में स्थित यह आत्मा वास्तव में परमात्मा ही है । वही साक्षी होने से उपद्रष्टा और यथार्थ सम्मति देने वाला होने से अनुमन्ता, सबका धारण-पोषण करने वाला होने से भर्ता, जीव रूप से भोक्त्ता, ब्रह्मा आदि का भी स्वामी

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अध्याय १३ शलोक २१

अध्याय १३ शलोक २१ The Gita – Chapter 13 – Shloka 21 Shloka 21  प्रकृति में स्थित ही पुरुष प्रकृति से उत्पन्न त्रिगुणात्मक पदार्थों को भोगता है और इन गुणों का सडग् ही इस जीवात्मा के अच्छी-बुरी योनियों में जन्म लेने का कारण हैं ।। २१ ।। The spirit (soul) residing in nature experiences the

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अध्याय १३ शलोक २०

अध्याय १३ शलोक २० The Gita – Chapter 13 – Shloka 20 Shloka 20  कार्य और करण को उत्पन्न करने में हेतु प्रकृति कही जाती है और जीवात्मा सुख-दुःखो के भोक्तापन में अर्थात् भोगने में हेतु कहा जाता है ।। २० ।। Both the effect and the cause are generated from nature, and the spirit

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अध्याय १३ शलोक १९

अध्याय १३ शलोक १९ The Gita – Chapter 13 – Shloka 19 Shloka 19  प्रकृति और पुरुष —इन दोनों को ही तू अनादि जान । और राग-द्बेषादि विकारों को तथा त्रिगुणात्मक सम्पूर्ण पदार्थों को भी प्रकृति से ही उत्पन्न जान ।। १९ ।। You must know that nature and spirit are both without being, and know

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अध्याय १३ शलोक १८

अध्याय १३ शलोक १८ The Gita – Chapter 13 – Shloka 18 Shloka 18  इस प्रकार क्षेत्र तथा ज्ञान और जानने योग्य परमात्मा का स्वरूप संक्षेप से कहा गया । मेरा भक्त्त इसको तत्व से जानकर मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है ।। १८ ।। Thus the field, knowledge and the knowable have been briefly

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अध्याय १३ शलोक १७

अध्याय १३ शलोक १७ The Gita – Chapter 13 – Shloka 17 Shloka 17  वह परब्रह्म ज्योतियों का भी ज्योति एंव माया से अत्यन्त परे कहा जाता है । वह परमात्मा बोध स्वरूप, जानने के योग्य एंव तत्व ज्ञान से प्राप्त करने योग्य है और सबके ह्रदय में विशेष रूप से स्थित है ।। १७

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अध्याय १३ शलोक १६

अध्याय १३ शलोक १६ The Gita – Chapter 13 – Shloka 16 Shloka 16  वह परमात्मा विभाग रहित एक रूप से आकाश के सद्र्श परिपूर्ण होने पर भी चराचर सम्पूर्ण भूतों में विभक्त्त सा स्थित प्रतीत होता है ; तथा वह जानने योग्य परमात्मा विष्णु रूप से भूतों को धारण-पोषण करने वाला और रुद्र रूप संहार करने वाला

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अध्याय १३ शलोक १५

अध्याय १३ शलोक १५ The Gita – Chapter 13 – Shloka 15 Shloka 15  वह चराचर सब भूतों के बाहर-भीतर परिपूर्ण है और चर-अचर रूप भी वही है ; और वह सूक्ष्म होने से अविज्ञेय है तथा अति समीप में और दूर में भी स्थित वही है ।। १५ ।। He is outside and inside

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