अध्याय १३

अध्याय १३ शलोक ३४

अध्याय १३ शलोक ३४ The Gita – Chapter 13 – Shloka 34 Shloka 34  इस प्रकार क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के भेद को कार्य सहित तथा प्रकृति से मुक्त्त होने को जो पुरुष ज्ञान नेत्रों द्वारा तत्व से जानते हैं, वे महात्मा जन परम ब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं ।। ३४ ।। They who know […]

अध्याय १३ शलोक ३४ Read More »

अध्याय १३ शलोक ३३

अध्याय १३ शलोक ३३ The Gita – Chapter 13 – Shloka 33 Shloka 33  हे अर्जुन ! जिस प्रकार एक ही सूर्य इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार एक ही आत्मा सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है ।। ३३ ।। Just as the one sun illuminates the whole world, so also the

अध्याय १३ शलोक ३३ Read More »

अध्याय १३ शलोक ३२

अध्याय १३ शलोक ३२ The Gita – Chapter 13 – Shloka 32 Shloka 32  जिस प्रकार सर्वत्र व्याप्त आकाश सूक्ष्म होने के कारण लिप्त नहीं होता, वैसे ही देह में सर्वत्र स्थित आत्मा निर्गुण होने के कारण देह के गुणों से लिप्त नहीं होता ।। ३२ ।। As the all pervading ether (sky) is not

अध्याय १३ शलोक ३२ Read More »

अध्याय १३ शलोक ३१

अध्याय १३ शलोक ३१ The Gita – Chapter 13 – Shloka 31 Shloka 31  हे अर्जुन ! अनादि होने से और निर्गुण होने से यह अविनाशी परमात्मा शरीर में स्थित होने पर भी वास्तव में न तो कुछ करता है और न लिप्त ही होता है ।। ३१ ।। The Supreme Self without beginning, without

अध्याय १३ शलोक ३१ Read More »

अध्याय १३ शलोक ३०

अध्याय १३ शलोक ३० The Gita – Chapter 13 – Shloka 30 Shloka 30  जिस क्षण यह पुरुष भूतों के पृथक-पृथक भाव को एक परमात्मा में ही स्थित तथा उस परमात्मा से ही सम्पूर्ण भूतों का विस्तार देखता है, उसी क्षण वह सच्चिदानन्दधन ब्रह्म को प्राप्त हो जाता हैं ।। ३० ।। When a man

अध्याय १३ शलोक ३० Read More »

अध्याय १३ शलोक २९

अध्याय १३ शलोक २९ The Gita – Chapter 13 – Shloka 29 Shloka 29  और जो पुरुष सम्पूर्ण कर्मों को सब प्रकार से प्रकृति के द्वारा ही किये जाते हुए देखता है आत्मा को अकर्ता देखता है, वही यथार्थ देखता है ।। २९ ।। He is the real seer (or sage) who sees that all

अध्याय १३ शलोक २९ Read More »

अध्याय १३ शलोक २८

अध्याय १३ शलोक २८ The Gita – Chapter 13 – Shloka 28 Shloka 28  क्योंकि जो पुरुष सब में समभाव से स्थित परमेश्वर को समान देखता हुआ अपने द्वारा अपने को नष्ट नहीं करता, इससे वह परम गति को प्राप्त होता है ।। २८ ।। Because he who sees the same Lord existing everywhere does

अध्याय १३ शलोक २८ Read More »

अध्याय १३ शलोक २७

अध्याय १३ शलोक २७ The Gita – Chapter 13 – Shloka 27 Shloka 27  जो पुरुष नष्ट होते हुए इस चराचर भूतों में परमेश्वर को नाशरहित और समभाव से स्थित देखता हैं, वही यथार्थ देखता हैं ।। २७ ।। He who beholds the imperishable Supreme Lord, existing equally in all perishable beings, realizes the truth.

अध्याय १३ शलोक २७ Read More »

अध्याय १३ शलोक २६

अध्याय १३ शलोक २६ The Gita – Chapter 13 – Shloka 26 Shloka 26  हे अर्जुन ! यावन्मात्र जितने भी स्थावर-जंगम प्राणी उत्पन्न होते हैं, उन सबको तू क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के संयोग से ही उत्पन्न जान ।। २६ ।। Whatever is born, unmoving or moving, O Arjuna, know it to be from the union of

अध्याय १३ शलोक २६ Read More »

अध्याय १३ शलोक २५

अध्याय १३ शलोक २५ The Gita – Chapter 13 – Shloka 25 Shloka 25  परन्तु इनसे दूसरे, अर्थात् जो मन्द बुद्भि वाले पुरुष हैं ; वे इस प्रकार न जानते हुए दूसरों से अर्थात् तत्व के जानने वाले पुरुषों से सुनकर ही तदनुसार उपासना करते है और वे श्रवण परायण पुरुष भी मृत्यु रूप संसार

अध्याय १३ शलोक २५ Read More »

Scroll to Top