अध्याय १२

अध्याय १२ शलोक ९

अध्याय १२ शलोक ९ The Gita – Chapter 12 – Shloka 9 Shloka 9  यदि तू मन को मुझ में अचल स्थापन करने के लिये समर्थ नहीं है तो हे अर्जुन ! अभ्यास रूप योग के द्वारा मुझको प्राप्त होने के लिये इच्छा कर ।। ९ ।। If you are not able to set your […]

अध्याय १२ शलोक ९ Read More »

अध्याय १२ शलोक ८

अध्याय १२ शलोक ८ The Gita – Chapter 12 – Shloka 8 Shloka 8  मुझ में मन को लगा और मुझ में ही बुद्भि को लगा ; इसके उपरान्त तू मुझ में ही निवास करेगा, इसमें कुछ भी संशय नहीं हैं ।। ८ ।। Therefore, fix your mind on Me alone, let your thoughts reside

अध्याय १२ शलोक ८ Read More »

अध्याय १२ शलोक ७

अध्याय १२ शलोक ७ The Gita – Chapter 12 – Shloka 7 Shloka 7  हे अर्जुन ! उन मुझ में चित्त लगाने वाले प्रेमी भक्त्तों का मैं शीघ्र ही मृत्यु रूप संसार समुद्र से उद्बार करने वाला होता हूँ ।। ७ ।। These worshippers’ thoughts are set on Me; hence O Arjuna, I become their

अध्याय १२ शलोक ७ Read More »

अध्याय १२ शलोक ६

अध्याय १२ शलोक ६ The Gita – Chapter 12 – Shloka 6 Shloka 6  परन्तु जो मेरे परायण रहने वाले भक्त्त जन सम्पूर्ण कर्मो को मुझ में अर्पण करके मुझ सगुण रूप परमेश्वर को ही अनन्य भक्त्तियों से निरन्तर चिन्तन करते हुए भजते हैं ।। ६ ।। But those who worship Me, dedicating all actions

अध्याय १२ शलोक ६ Read More »

अध्याय १२ शलोक ५

अध्याय १२ शलोक ५ The Gita – Chapter 12 – Shloka 5 Shloka 5  उन सच्चिदानन्दधन निराकार ब्रह्मा में आसक्त्त चित्त वाले पुरुषों के साधन में परिश्रम विशेष है ; क्योंकि देहाभिमानियों के द्वारा अव्यक्त्त विषयक गति दुःख पूर्वक प्राप्त की जाती हैं  ।। ५ ।। However, the worship of God without form is very

अध्याय १२ शलोक ५ Read More »

अध्याय १२ शलोक ३,४

अध्याय १२ शलोक ३,४ The Gita – Chapter 12 – Shloka 3,4 Shloka 3,4  परन्तु जो पुरुष इन्द्रियों के समुदाय को भली प्रकार वश में करके मन बुद्भि से परे, सर्वव्यापी अकथनीय स्वरूप और सदा एक रस रहने वाले, नित्य, अचल, निराकार’ अविनाशी, सच्चिदानन्दधन ब्रह्मा को निरन्तर एकीभाव से ध्यान करते हुए भजते हैं, वे

अध्याय १२ शलोक ३,४ Read More »

अध्याय १२ शलोक २

अध्याय १२ शलोक २ The Gita – Chapter 12 – Shloka 2 Shloka 2  श्रीभगवान् बोले —–मुझ में मन को एकाग्र करके निरन्तर मेरे भजन ध्यान में लगे हुए* जो भक्त्त जन अतिशय श्रेष्ट श्रद्बा से युक्त्त होकर मुझ सगुण रूप परमेश्वर को भजते हैं, वे मुझको योगियों में अति उत्तम योगी मान्य हैं ।।

अध्याय १२ शलोक २ Read More »

अध्याय १२ शलोक १

अध्याय १२ शलोक १ The Gita – Chapter 12 – Shloka 1 Shloka 1  अर्जुन बोले ——-जो अनन्य प्रेमी भक्त्त जन पुर्वोक्त्त प्रकार से निरन्तर आपके भजन ध्यान में लगे रहकर आप सगुण रूप परमेश्वर को और दूसरे जो केवल अविनाशी सच्चिदानन्दघन निराकार ब्रह्मा को ही अति श्रेष्ट भाव से भजते हैं ——उन दोनों प्रकार

अध्याय १२ शलोक १ Read More »

Scroll to Top