अध्याय ११

अध्याय ११ शलोक २३

अध्याय ११ शलोक २३ The Gita – Chapter 11 – Shloka 23 Shloka 23  हे महाबाहो ! आपके बहुत मुख और नेत्रों वाले, बहुत हाथ, जड़ा और पैरो वाले, बहुत उदरों वाले और बहुत सी दाढ़ों के कारण अत्यन्त विकराल महान् रुपको देखकर सब लोग व्याकुल हो रहे हैं तथा मैं भी व्याकुल हो रहा […]

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अध्याय ११ शलोक २२

अध्याय ११ शलोक २२ The Gita – Chapter 11 – Shloka 22 Shloka 22  जो ग्यारह रूद्र और बारह आदित्य तथा आठ वसु, साध्य गण, विश्वेदेव अश्विनी कुमार तथा मरुदगण और पितरों का समुदाय तथा गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और सिद्धों के समुदाय है —-वे सब ही विस्मित होकर आपको देखते है ।। २२ ।। The Rudras

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अध्याय ११ शलोक २१

अध्याय ११ शलोक २१ The Gita – Chapter 11 – Shloka 21 Shloka 21  वे ही देवताओं के समूह आप में प्रवेश करते है और कुछ भयभीत होकर हाथ जोड़े आपके नाम और गुणों का उच्चारण करते है तथा महर्षि और सिद्धो के समुदाय ‘कल्याण हो’ ऐसा कहकर उत्तम-उत्तम स्तोत्रों द्वारा आपकी स्तुति करते हैं

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अध्याय ११ शलोक २०

अध्याय ११ शलोक २० The Gita – Chapter 11 – Shloka 20 Shloka 20  हे महात्मन् ! यह स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का सम्पूर्ण आकाश तथा सब दिशाएँ एक आप से ही परिपूर्ण है तथा आप के इस अलौकिक और भयंकर रूप को देख कर तीनो लोक अतिव्यथा को प्राप्त हो रहे हैं  ।।

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अध्याय ११ शलोक १९

अध्याय ११ शलोक १९ The Gita – Chapter 11 – Shloka 19 Shloka 19  आपको आदि, अन्त, और मध्य से रहित, अनन्त सामर्थ्य से युक्त्त, अनन्त भुजा वाले, चन्द्र-सूर्य रूप नेत्रों वाले, प्रज्वलित अग्नि रूप मुख वाले और अपने तेज से इस जगत् को संतप्त करते हुए देखता हूँ  ।। १९ ।। O Great Lord,

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अध्याय ११ शलोक १८

अध्याय ११ शलोक १८ The Gita – Chapter 11 – Shloka 18 Shloka 18  आप ही जानने योग्य परम अक्षर अर्थात् परब्रह्म परमात्मा हैं, आप ही इस जगत् के परम आश्रय हैं, आप ही अनादि धर्म के रक्षक है और आप ही अविनाशी सनातन पुरुष हैं । ऐसा मेरा मत हैं ।। १८ ।। You

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अध्याय ११ शलोक १७

अध्याय ११ शलोक १७ The Gita – Chapter 11 – Shloka 17 Shloka 17  आप को मैं मुकुट युक्त्त, गदा युक्त्त और चक्र युक्त्त तथा सब ओर से प्रकाशमान तेज के पुञ्ज, प्रज्वलित अग्नि और सूर्य के सद्र्श ज्योति युक्त्त, कठिनता से देखे जाने योग्य और सब ओर से अप्रमेय स्वरूप देखता हूँ ।।  ।।

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अध्याय ११ शलोक १६

अध्याय ११ शलोक १६ The Gita – Chapter 11 – Shloka 16 Shloka 16  हे सम्पूर्ण विश्व के स्वामिन् ! आपको अनेक भुजा, पेट, मुख, और नेत्रों से युक्त्त तथा सब ओर से अनन्त रूपों वाला देखता हूँ । हे विश्व रूप ! मैं आपके न अन्त को देखता हूँ न मध्य को, और न

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अध्याय ११ शलोक १५

अध्याय ११ शलोक १५ The Gita – Chapter 11 – Shloka 15 Shloka 15  अर्जुन बोले—–हे देव ! मै आपके शरीर में सम्पूर्ण देवों कों तथा अनेक भूतों के समुदायों कों, कमल के आसन पर विराजित ब्रह्मा को, महादेव को और सम्पूर्ण ऋषियों को तथा दिव्य सर्पो को देखता हूँ ।। १५ ।। O Lord,

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अध्याय ११ शलोक १४

अध्याय ११ शलोक १४ The Gita – Chapter 11 – Shloka 14 Shloka 14  उसके अनन्तर वे आश्चर्य से चकित और पुलकित शरीर अर्जुन प्रकाश मय विश्व रूप परमात्मा को श्रद्धा-भक्त्तिसहित सिर से प्रणाम करके हाथ जोड़ कर बोले —-।। १४ ।। After seeing this vision, Arjuna was extremely amazed and left in awe. He

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