अध्याय ११

अध्याय ११ शलोक ३४

अध्याय ११ शलोक ३४ The Gita – Chapter 11 – Shloka 34 Shloka 34  द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह तथा जयद्रथ और कर्ण तथा और भी बहुत से मेरे द्वारा मारे हुए शूर वीर, योद्धाओं को तू मार । भय मत कर । नि:संदेह तू युद्ध में बैरियों को जीतेगा । इसलिये युद्ध कर ।। ३४ […]

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अध्याय ११ शलोक ३३

अध्याय ११ शलोक ३३ The Gita – Chapter 11 – Shloka 33 Shloka 33  अतएव तू उठ ! यश प्राप्त कर और शत्रुओं को जीत कर धन-धान्य सम्पन्न राज्य को भोग । ये सब शूर वीर पहले ही से मेरे द्वारा मारे हुए हैं  । हे सव्यसाचिन् ! तू तो केवल निमित्त मात्र बन जा

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अध्याय ११ शलोक ३२

अध्याय ११ शलोक ३२ The Gita – Chapter 11 – Shloka 32 Shloka 32  श्रीभगवान् बोले— मैं लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ महाकाल हूँ । इस समय इन लोकों को नष्ट करने के लिये प्रवृत हुआ हूँ । इसलिये  जो प्रतिपक्षियों की सेना में स्थित योद्धा लोग हैं, वे सब तेरे बिना भी

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अध्याय ११ शलोक ३१

अध्याय ११ शलोक ३१ The Gita – Chapter 11 – Shloka 31 Shloka 31 मुझे बतलाइये कि आप उग्र रूप वाले कौन हैं ? हे देवों में श्रेष्ट ! आपको नमस्कार हो । आप प्रसन्न होईये । आदि पुरुष आपको मैं विशेष रूप से जानना चाहता हूँ ; क्योंकि मैं आपकी प्रवृति को नहीं जानता

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अध्याय ११ शलोक ३०

अध्याय ११ शलोक ३० The Gita – Chapter 11 – Shloka 30 Shloka 30  आप उन सम्पूर्ण लोकों को प्रज्वलित मुखों द्वारा ग्रास करते हुए सब ओर से बार- बार चाट रहे है, हे विष्णो ! आपका उग्र प्रकाश सम्पूर्ण जगत् को तेज के द्वारा परिपूर्ण करके तपा रहा हैं ।। ३० ।। The large fires that

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अध्याय ११ शलोक २९

अध्याय ११ शलोक २९ The Gita – Chapter 11 – Shloka 29 Shloka 29  जैसे पतंग मोह वश नष्ट होने के लिये प्रज्वलित अग्नि में अतिवेग से दौड़ते हुए प्रवेश करते हैं, वैसे ही ये सब लोग भी अपने नाश के लिये आपके मुखों में अतिवेग से दौड़ते हुए प्रवेश कर रहे हैं ।। २९

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अध्याय ११ शलोक २८

अध्याय ११ शलोक २८ The Gita – Chapter 11 – Shloka 28 Shloka 28  जैसे नदियों के बहुत से जल के प्रवाह स्वाभाविक ही समुद्र के ही सम्मुख दौड़ते हैं अर्थात् समुद्र में प्रवेश करते हैं, वैसे ही वे नरलोक के वीर भी आपके प्रज्वलित मुखों में प्रवेश कर रहे हैं ।। २८ ।। Your

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अध्याय ११ शलोक २६,२७

अध्याय ११ शलोक २६,२७ The Gita – Chapter 11 – Shloka 26,27 Shloka 26,27  वे सभी धृतराष्ट्र के पुत्र राजाओं के समुदाय सहित आप में प्रवेश कर रहे हैं और भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य तथा वह कर्ण और हमारे पक्ष के भी प्रधान योद्धाओं के सहित सब-के-सब आपके दाढ़ों के कारण विकराल भयानक मुखों से बड़े

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अध्याय ११ शलोक २५

अध्याय ११ शलोक २५ The Gita – Chapter 11 – Shloka 25 Shloka 25  दाढ़ों के कारण विकराल और प्रलय काल की अग्नि के समान आपके मुखों कों देख कर मैं दिशाओं को नहीं जानता हूँ और सुख भी नहीं पाता हूँ । इसलिये हे देवेश ! हे जगन्निवास ! आप प्रसन्न हों ।। २५

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अध्याय ११ शलोक २४

अध्याय ११ शलोक २४ The Gita – Chapter 11 – Shloka 24 Shloka 24  क्योंकि हे विष्णो ! आकाश को स्पर्श करने वाले, देदीप्यमान, अनेक वर्णों से युक्त्त तथा फैलाये हुए मुख और प्रकाश मान विशाल नेत्रों से युक्त्त आपको देखकर भयभीत अन्त:करण वाला मैं धीरज ओर शान्ति नहीं पाता हूँ ।। २४ ।। O

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