अध्याय ११

अध्याय ११ शलोक ४५

अध्याय ११ शलोक ४५ The Gita – Chapter 11 – Shloka 45 Shloka 45  मैं पहले न देखे हुए आपके इस आश्चर्य मय रूप को देख कर हर्षित हो रहा हूँ और मेरा मन भय से अति व्याकुल भी हो रहा हैं ; इसलिये आप उस अपने चतुर्भुज विष्णु रूप को ही मुझे दिखलाइये ! […]

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अध्याय ११ शलोक ४४

अध्याय ११ शलोक ४४ The Gita – Chapter 11 – Shloka 44 Shloka 44  अतएव हे प्रभो ! मैं शरीर को भली भांति चरणों में निवेदित कर प्रणाम करके स्तुति करने योग्य आप ईश्वर को प्रसन्न होने के लिये प्रार्थना करता हूँ, हे देव ! पिता जैसे पुत्र के, सखा जैसे सखा के और पति

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अध्याय ११ शलोक ४३

अध्याय ११ शलोक ४३ The Gita – Chapter 11 – Shloka 43 Shloka 43  आप इस चराचर जगत् के पिता और सबसे बड़े गुरु एवं अति पूजनीय हैं, हे अनुपम प्रभाव वाले ! तीनों लोकों में आपके समान भी दूसरा कोई नहीं है फिर अधिक तो कैसे हो सकता हैं ।। ४३ ।। Arjuna continued

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अध्याय ११ शलोक ४१,४२

अध्याय ११ शलोक ४१,४२ The Gita – Chapter 11 – Shloka 4142 Shloka 4142  आपके इस प्रभाव को न जानते हुए, आप मेरे सखा हैं ऐसा मानकर प्रेम से अथवा प्रमाद से भी मैने ‘हे कृष्ण !,’ हे यादव !,’ हे सखे !’ इस प्रकार जो कुछ बिना सोचे समझे ह्ठात् कहा हैं और हे

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अध्याय ११ शलोक ४०

अध्याय ११ शलोक ४० The Gita – Chapter 11 – Shloka 40 Shloka 40  हे अनन्त सामर्थ्य वाले ! आपके लिये आगे से और पीछे से भी नमस्कार ! हे सर्वात्मन् ! आपके लिये सब ओर से ही नमस्कार हो । क्योंकि अनन्त पराक्रमशाली आप समस्त संसार को व्याप्त किये हुए है, इससे आप ही

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अध्याय ११ शलोक ३९

अध्याय ११ शलोक ३९ The Gita – Chapter 11 – Shloka 39 Shloka 39  आप वायु, यमराज ; अग्नि, वरुण, चन्द्रमा, प्रजा के स्वामी ब्रह्मा और ब्रह्मा के भी पिता हैं । आपके लिये हजारों बार नमस्कार ! नमस्कार हो !! आपके लिये फिर भी बार-बार नमस्कार ! नमस्कार !! ।। ३९।। You are the

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अध्याय ११ शलोक ३८

अध्याय ११ शलोक ३८ The Gita – Chapter 11 – Shloka 38 Shloka 38  आप आदि देव और सनातन पुरुष हैं, आप इस जगत् के परम आश्रय और जानने वाले तथा जानने योग्य और परम धाम हैं । हे अनन्त रूप ! आप से यह सब जगत् व्याप्त अर्थात् परिपूर्ण हैं ।। ३८ ।। You

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अध्याय ११ शलोक ३७

अध्याय ११ शलोक ३७ The Gita – Chapter 11 – Shloka 37 Shloka 37  हे महात्मन् ! ब्रह्मा के भी आदिकर्ता और सबसे बड़े आप के लिये वे कैसे नमस्कार न करें ; क्योकि हे अनन्त ! हे देवेश ! हे जगन्निवास ! जो सत्, असत् और उनसे परे अक्षर अर्थात् सच्चिदानन्धन ब्रह्मा है वह

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अध्याय ११ शलोक ३६

अध्याय ११ शलोक ३६ The Gita – Chapter 11 – Shloka 36 Shloka 36  अर्जुन बोले—-हे अन्तर्यामिन् ! यह योग्य ही है की आपके नाम, गुण और प्रभाव के कीर्तन से जगत् अति हर्षित हो रहा है और अनुराग को भी प्राप्त हो रहा है तथा भयभीत राक्षस लोग दिशाओं में भाग रहे है और

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अध्याय ११ शलोक ३५

अध्याय ११ शलोक ३५ The Gita – Chapter 11 – Shloka 35 Shloka 35  संजय बोले —– केशव भगवान् के इस वचन को सुन कर मुकुट धारी अर्जुन हाथ जोड़ कर काँपता हुआ नमस्कार करके, फिर भी अत्यन्त भयभीत होकर प्रणाम करके भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति गदगद वाणी से बोले —- ।। ३५ ।। Sanjaya

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