अध्याय ११

अध्याय ११ शलोक ५५

अध्याय ११ शलोक ५५ The Gita – Chapter 11 – Shloka 55 Shloka 55  हे अर्जुन ! जो पुरुष केवल मेरे ही लिये सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को करने वाला हैं, मेरे परायण है, मेरा भक्त्त हैं, आसक्तिरहित है और सम्पूर्ण भूत प्राणियों में वैर भाव से रहित है वह अनन्य भक्ति युक्त पुरुष मुझको ही […]

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अध्याय ११ शलोक ५४

अध्याय ११ शलोक ५४ The Gita – Chapter 11 – Shloka 54 Shloka 54  परन्तु हे परंतप अर्जुन ! अनन्य भक्क्ति के द्वारा इस प्रकार चतुर्भुज रूप वाला मैं प्रत्यक्ष देखने के लिये, तत्व से जानने के लिये तथा प्रवेश करने के लिये अर्थात् एकीभाव से प्राप्त होने के लिये भी शक्य हूँ ।। ५४

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अध्याय ११ शलोक ५३

अध्याय ११ शलोक ५३ The Gita – Chapter 11 – Shloka 53 Shloka 53  जिस प्रकार तुमने मुझको देखा है —–इस प्रकार चतुर्भुज रूप वाला मैं न वेदों से, न तप से, न दान से और न यज्ञ से ही देखा जा सकता हूँ ।। ५३ ।। Not even with such religious acts as ritual

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अध्याय ११ शलोक ५२

अध्याय ११ शलोक ५२ The Gita – Chapter 11 – Shloka 52 Shloka 52  श्रीभगवान् बोले ——मेरा जो चतुर्भुज रूप तुमने देखा हैं, यह सुदुर्दर्श है अर्थात् इसके दर्शन बड़े ही दुर्लभ हैं । देवता भी सदा इस रूप के दर्शन की आकांक्षा करते रहते हैं  ।। ५२ ।। The Blessed lord said: Dear Arjuna,

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अध्याय ११ शलोक ५१

अध्याय ११ शलोक ५१ The Gita – Chapter 11 – Shloka 51 Shloka 51 अर्जुन बोले —–हे जनार्दन ! आपके इस अति शान्त मनुष्य रूप को देखकर अब मैं स्थिर चित्त हो गया हूँ और अपनी स्वाभाविक स्थिति को प्राप्त हो गया हूँ ।। ५१ ।। Arjuna responded in relief: Now that I see your

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अध्याय ११ शलोक ५०

अध्याय ११ शलोक ५० The Gita – Chapter 11 – Shloka 50 Shloka 50  संजय बोले ——-वासुदेव भगवान् ने अर्जुन के प्रति इस प्रकार कहकर फिर वैसे ही अपने चतुर्भुज रूप को दिखलाया और फिर महात्मा श्रीकृष्ण ने सौम्य मूर्ति होकर इस भयभीत अर्जुन को धीरज दिया ।। ५० ।। Sanjaya further recounted: Having said

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अध्याय ११ शलोक ४९

अध्याय ११ शलोक ४९ The Gita – Chapter 11 – Shloka 49 Shloka 49  मेरे इस प्रकार के इस विकराल रूप को देख कर तुझको व्याकुलता नहीं होनी चाहिये और मूढ़ भाव भी नहीं होना चाहिये । तू भय रहित और प्रीति युक्त्त मन वाला होकर उसी मेरे इस शंख-चक्र-गदा-पद्मयुक्त चतुर्भुज रूप को फिर देख

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अध्याय ११ शलोक ४८

अध्याय ११ शलोक ४८ The Gita – Chapter 11 – Shloka 48 Shloka 48  हे अर्जुन ! मनुष्य लोक में इस प्रकार विश्व रूप वाला मैं न वेद और यज्ञों के अध्ययन से, न दान से, न क्रियाओं से और न उग्र तपों से ही तेरे अतिरिक्त दूसरे के द्वारा देखा जा सकता हूँ ।।

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अध्याय ११ शलोक ४७

अध्याय ११ शलोक ४७ The Gita – Chapter 11 – Shloka 47 Shloka 47  श्रीभगवान् बोले ——-हे अर्जुन ! अनुग्रह पूर्वक मैंने अपनी योग शक्त्ति के प्रभाव से यह मेरा परम तेजोमय, सबका आदि और सीमा रहित विराट् रूप तुझको दिखलाया है, जिसे तेरे अतिरिक्त दूसरे किसी ने पहले नहीं देखा था ।। ४७ ।।

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अध्याय ११ शलोक ४६

अध्याय ११ शलोक ४६ The Gita – Chapter 11 – Shloka 46 Shloka 46  मैं वैसे ही आपको मुकुट धारण किये हुए तथा गदा और चक्र हाथ में लिये हुए देखना चाहता हूँ, इसलिये हे विश्व रूप ! हे सह्स्त्र्बाहो ! आप उसी चतुर्भुज रूप से प्रकट होइये  ।। ४६ ।। Dear Lord, I wish

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