अध्याय १०

अध्याय १० शलोक २२

अध्याय १० शलोक २२ The Gita – Chapter 10 – Shloka 22 Shloka 22  मै वेदों में सामवेद हूँ, देवों में इन्द्र हूँ, इन्द्रियों में मन हूँ और भूत-प्राणियों की चेतना अर्थात् जीवन शक्त्ति हूँ ।। २२ ।। Of the Vedas I am the Veda of songs, I am Indra, the Chief of Gods I am […]

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अध्याय १० शलोक २१

अध्याय १० शलोक २१ The Gita – Chapter 10 – Shloka 21 Shloka 21  मै अदिति के बारह पुत्रों में विष्णु और ज्योतियों में किरणों वाला सूर्य हूँ तथा मैं उन्नचास वायु देवताओं का तेज और नक्षत्रों का अधिपति चन्द्रमा हूँ ।। २१ ।। Among the sons of light I am Vishnu; of radiances, the

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अध्याय १० शलोक २०

अध्याय १० शलोक २० The Gita – Chapter 10 – Shloka 20 Shloka 20  हे अर्जुन ! मैं सब भूतों के ह्रदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा सम्पूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अन्त भी मैं ही हूँ ।। २० ।। I, O Gudakesha (the conqueror of slumber) am the soul, seated in the

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अध्याय १० शलोक १९

अध्याय १० शलोक १९ The Gita – Chapter 10 – Shloka 19 Shloka 19  श्रीभगवान् बोले—हे कुरूश्रेष्ठ ! अब मैं जो मेरी दिव्य विभूतियां हैं, उनको तेरे लिये प्रधानता से कहूँगा; क्योंकि मेरे विस्तार का अन्त नहीं है ।। १९ ।। The Blessed Lord said: You are blessed O Best of the KURUS; hence I will

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अध्याय १० शलोक १८

अध्याय १० शलोक १८ The Gita – Chapter 10 – Shloka 18 Shloka 18  हे जनार्दन ! अपनी योग शक्त्ति को और विभूति को फिर भी विस्तार पूर्वक कहिये; क्योकि आपके अमृत मय वचनों को सुनते हुए मेरी तृप्ति नहीं होती अर्थात् सुनने की उत्कण्ठा बनी ही रहती है ।। १८ ।। Arjuna demanded further: Lord Krishna,

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अध्याय १० शलोक १७

अध्याय १० शलोक १७ The Gita – Chapter 10 – Shloka 17 Shloka 17  हे योगेश्वर ! मै किस प्रकार निरन्तर चिन्तन करता हुआ आपको जानूं और हे भगवन् ! आप किन-किन भावों में मेरे द्बारा चिन्तन करने योग्य हैं ? ।। १७ ।। Lord Krishna, please, fully describe to me, how I shall truly

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अध्याय १० शलोक १६

अध्याय १० शलोक १६ The Gita – Chapter 10 – Shloka 16 Shloka 16  इसलिये आप ही उन अपनी दिव्य विभूतियों को सम्पूर्णता से कहने में समर्थ हैं, जिन विभूतियों के द्बारा आप इन सब लोकों को व्याप्त करके स्थित हैं ।। १६।। Therefore, dear Lord, only You alone can describe to me,the divine glories

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अध्याय १० शलोक १५

अध्याय १० शलोक १५ The Gita – Chapter 10 – Shloka 15 Shloka 15  हें भूतों को उत्पन्न करने वाले ! हे भूतों के ईश्वर ! हे देवों के देव ! जगत्त् के स्वामी ! हे पुरुषोतम ! आप स्वयं ही अपने से अपने को जानते हैं ।।१५।। Arjuna continued: O Krishna, Originator of all,

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अध्याय १० शलोक १४

अध्याय १० शलोक १४ The Gita – Chapter 10 – Shloka 14 Shloka 14  हे केशव ! जो कुछ भी मेरे प्रति आप कहते हैं, इस सब को मैं सत्य मानता हूँ । हे भगवन् ! आपके लीलामय, स्वरूप को न तो दानव जानते हैं और न देवता ही ।। १४ ।। Lord Krishna, I

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अध्याय १० शलोक १२,१३

अध्याय १० शलोक १२,१३ The Gita – Chapter 10 – Shloka 12,13 Shloka 12,13  अर्जुन बोले—-आप परम ब्रह्रा, परम धाम और परम पवित्र है ; क्योंकि आपको सब ऋषिगण सनातन दिव्य पुरुष एवं देवों का भी आदिदेव, अजन्मा और सर्व व्यापी कहते हैं, वैसे ही देवषि नारद तथा असित और देवल ऋषि तथा महषि व्यास

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