Author name: TheGita Hindi

अध्याय १ शलोक ४१

अध्याय १ शलोक ४१ The Gita – Chapter 1 – Shloka 41 Shloka 41  हे कृष्ण ! पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियां अत्यन्त दूषित हो जाती हैं और हे वार्ष्णेय ! स्त्रियों के दूषित हो जाने पर वर्णसंकर उत्पन्न होता है  ।। ४१ ।। O KRISHNA, with the growth of evil […]

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अध्याय १ शलोक ४०

अध्याय १ शलोक ४० The Gita – Chapter 1 – Shloka 40 Shloka 40 कुल के नाश से सनातन कुल-धर्म नष्ट हो जाते हैं, धर्म के नाश हो जाने पर सम्पूर्ण कुल में पाप भी बहुत फैल जाता है ।। ४० ।। Arjuna explained: When one begins to destroy his own family, then his ancient,

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अध्याय १ शलोक ३८,३९

अध्याय १ शलोक ३८,३९ The Gita – Chapter 1 – Shloka 38,39 Shloka 38,39 यधपि लोभ से भ्रष्टचित्त हुए ये लोग से कुल के नाश से उत्पन्न दोष को और मित्रों से विरोध करने में पाप को नहीं देखते, तो भी हे जनार्दन ! कुल के नाश से उत्पन्न दोष को जानने वाले हम लोगों

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अध्याय १ शलोक ३७

अध्याय १ शलोक ३७ The Gita – Chapter 1 – Shloka 37 Shloka 37 अतएव हे माधव ! अपने ही बान्धव धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारने के लिये हम योग्य नहीं हैं ; क्योंकि अपने ही कुटुम्ब को मारकर हम कैसे सुखी होंगे ।। ३७ ।। O KRISHNA, why should we kill our own loved

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अध्याय १ शलोक ३६

अध्याय १ शलोक ३६ The Gita – Chapter 1 – Shloka 36 Shloka 36 हे जनार्दन ! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या प्रसन्नता होगी ? इन आततायियों को मारकर तो हमें पाप ही लगेगा ।। ३६ ।। What satisfaction or pleasure can we possibly derive, O JANARDHANA (Krishna) by doing away with the

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अध्याय १ शलोक ३५

अध्याय १ शलोक ३५ The Gita – Chapter 1 – Shloka 35 Shloka 35 हे मधुसूदन ! मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्य के लिये भी मैं इन सबको मारना नहीं चाहता, फिर पृथ्वी के लिये तो कहना ही क्या है ? ।। ३५ ।। Arjuna spoke to the Lord Madhusudhana (Lord

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अध्याय १ शलोक ३४

अध्याय १ शलोक ३४ The Gita – Chapter 1 – Shloka 34 Shloka 34 गुरुजन, ताऊ-चाचे, लड़के और उसी प्रकार दादे, मामे, ससुर, पौत्र, साले तथा और भी सम्बन्धी लोग हैं ।। ३४ ।। O Lord KRISHNA, I do not want to kill my teachers, uncles, friends, fathers-in-law, grandsons, brothers-in-law, and other relatives and well-wishers.

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अध्याय १ शलोक ३३

अध्याय १ शलोक ३३ The Gita – Chapter 1 – Shloka 33 Shloka 33 हमें जिनके लिये राज्य, भोग और सुखादिं अभीष्ट हैं, वे ही ये सब धन और जीवन की आशा को त्याग कर युद्ध में खड़े हैं ।। ३३ ।। Those whom we seek these pleasures from (the enjoyment of kingdom), are standing

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अध्याय १ शलोक ३२

अध्याय १ शलोक ३२ The Gita – Chapter 1 – Shloka 32 Shloka 32 हे कृष्ण ! मैं न तो विजय चाहता हूँ और न राज्य तथा सुखों को ही । हे गोविन्द ! हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है ? ।। ३२

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अध्याय १ शलोक ३१

अध्याय १ शलोक ३१ The Gita – Chapter 1 – Shloka 31 Shloka 31 हे केशव ! मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्ध में स्वजन-समुदाय को मारकर कल्याण भी नहीं देखता ।। ३१ ।। I cannot see any good in slaughtering and killing my friends and relatives in battle. O

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