Author name: TheGita Hindi

अध्याय २ शलोक ४

अध्याय २ शलोक ४ The Gita – Chapter 2 – Shloka 4 Shloka 4  अर्जुन बोले — हे मधुसूदन ! मैं रणभूमि में किस प्रकार बाणों से भीष्मपितामह और द्रोणाचार्य के विरुद्भ लडूंगा ! क्योंकि हे अरिसूदन ! वे दोनों ही पूजनीय हैं ।। ४ ।। Arjuna asked the Lord: O Madhusudana (Lord Krishna), the […]

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अध्याय २ शलोक ३

अध्याय २ शलोक ३ The Gita – Chapter 2 – Shloka 3 Shloka 3  इसलिये हे अर्जुन ! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती । हे परंतप ! ह्रदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिये खड़ा हो जा ।।३ ।। The great Lord Krishna continued: O Arjuna, be

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अध्याय २ शलोक २

अध्याय २ शलोक २ The Gita – Chapter 2 – Shloka 2 Shloka 2  श्रीभगवान् बोले —- हे अर्जुन ! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ ! क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है

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अध्याय २ शलोक १

अध्याय २ शलोक १ The Gita – Chapter 2 – Shloka 1 Shloka 1 संजय बोले —- उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रोंवाले शोकयुक्त्त उस अर्जुन के प्रति भगवान् मधुसूधन ने यह वचन कहा ।। १ ।। Sanjay recounted: MADHUSUDANA (Lord Krishna) then spoke in his divine voice unto

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अध्याय १ शलोक ४७

अध्याय १ शलोक ४७ The Gita – Chapter 1 – Shloka 47 Shloka 47  संजय बोले —- रणभूमि में शोकसे उद्भिग्नमन वाले  अर्जुन इस प्रकार कहकर, बाण सहित धनुष को त्याग कर रथ के पिछले भाग में बैठ गये ।। ४७ ।। Sanjaya said: Having said this, ARJUNA, still extremely sad and confused sat on

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अध्याय १ शलोक ४६

अध्याय १ शलोक ४६ The Gita – Chapter 1 – Shloka 46 Shloka 46  यदि मुझ शस्त्ररहित एवं सामना न करने वाले को शस्त्र हाथ में लिये हुए धृतराष्ट्र के पुत्र रण में मार डालें तो वह मारना भी मेरे लिए अधिक कल्याणकारक होगा ।। ४६ ।। Arjuna spoke in misery: I think it would

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अध्याय १ शलोक ४५

अध्याय  १ शलोक ४५ The Gita – Chapter 1 – Shloka 45 Shloka 45  हा ! शोक ! हमलोग बुद्भिमान् होकर भी महान् पाप करने को तैयार हो गये हैं, जो राज्य और सुख के लोभ से स्वजनों को मारने के लिये उधत हो गये हैं ।। ४५ ।। Moreover, it is a great shame,

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अध्याय १ शलोक ४४

अध्याय १ शलोक ४४ The Gita – Chapter 1 – Shloka 44 Shloka 44  हे जनार्दन ! जिनका कुल-धर्म नष्ट हो गया है, ऐसे मनुष्यों का अनिश्चित काल तक नरक में वास होता है, ऐसा हम सुनते आये हैं ।। ४४ ।। Arjuna said to Lord Krishna: It has been heard, O JANARDHANA (Krishna) that

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अध्याय १ शलोक ४३

अध्याय १ शलोक ४३ The Gita – Chapter 1 – Shloka 43 Shloka 43  इन वर्णसंकरकारक दोषों से कुलघातियों के सनातन कुल धर्म और जाती-धर्म नष्ट हो जाते हैं ।। ४३ ।। The everlasting traditions, customs and principles of a caste are destroyed when different castes join together and create mixed-blood generations. This leads to

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अध्याय १ शलोक ४२

अध्याय १ शलोक ४२ The Gita – Chapter 1 – Shloka 42 Shloka 42  वर्णसंकर कुलघातियों को और कुल को नरक में ले जाने के लिये ही होता है । लुप्त हुई पिण्ड और जलकी क्रिया वाले अर्थात् श्राद्ब और तर्पण से वंचित इनके पितरलोग भी अधो गति को प्राप्त होते हैं ।। ४२ ।।

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