Author name: TheGita Hindi

अध्याय २ शलोक १४

अध्याय २ शलोक १४ The Gita – Chapter 2 – Shloka 14 Shloka 14  हे कुन्तीपुत्र ! सर्दी, गर्मी और सुख-दुःख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति-विनाशशील और अनित्य हैं, इसलिये हे भारत तू उनको सहन कर ।। १४ ।। The Blessed Lord continued: O son of KUNTI (Arjuna), when the […]

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अध्याय २ शलोक १३

अध्याय २ शलोक १३ The Gita – Chapter 2 – Shloka 13 Shloka 13  जैसे जीवात्मा इस देह में बालकपन, जवानी और वृद्बावस्था होती है, वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है ; उस विषय में धीर पुरुष मोहित नही होता ।। १३ ।। Lord Krishna continued: Dear ARJUNA, the wise never get confused

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अध्याय २ शलोक १२

अध्याय २ शलोक १२ The Gita – Chapter 2 – Shloka 12 Shloka 12  न तो ऐसा ही है की मैं किसी काल में नहीं था, तू नहीं था अथवा ये राजालोग नहीं थे और न ऐसा ही है की इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे ।। १२ ।। “ARJUNA”, always remember, there has never

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अध्याय २ शलोक ११

अध्याय २ शलोक ११ The Gita – Chapter 2 – Shloka 11 Shloka 11  श्रीभगवान् बोले — हे अर्जुन ! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिये शोक करता है और पण्डितो के से वचनों को कहता है ; परंतु जिनके प्राण चले गये हैं, उनके लिए और जिनके प्राण नहीं चले गये हैं, उनके

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अध्याय २ शलोक १०

अध्याय २ शलोक १० The Gita – Chapter 2 – Shloka 10 Shloka 10  हे भरतवंशी धृतराष्ट्र ! अन्तर्यामी श्रीकृष्ण महाराज दोनों सेनाओं के बीच में शोक करते हुए उस अर्जुन को हँसते हुए से यह वचन बोले ।। १० ।। “O ARJUNA,” HRISHIKESA spoke smilingly, as ARJUNA stood between the two armies: The Gita

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अध्याय २ शलोक ९

अध्याय २ शलोक ९ The Gita – Chapter 2 – Shloka 9 Shloka 9  संजय बोले —– हे राजन् ! निद्रा को जीतने वाले अर्जुन अन्तर्यामी श्रीकृष्ण महाराज के प्रति इस प्रकार कहकर फिर श्री गोविन्द भगवान् से ‘युद्ध नहीं करूँगा’ यह स्पष्ट कहकर चुप हो गये ।। ९ ।। Sanjaya said: Dear Dhrtarashtra, my

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अध्याय २ शलोक ८

अध्याय २ शलोक ८ The Gita – Chapter 2 – Shloka 8 Shloka 8  क्योंकि भूमि में निष्कण्टक, धन-धान्य सम्पन्न राज्य को और देवताओं के स्वामीपने को प्राप्त होकर भी मैं उस उपाय को नहीं देखता हूँ, जो मेरी इन्द्रियों के सुखाने वाले शोक को दूर कर सके ।। ८ ।। I cannot find any

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अध्याय २ शलोक ७

अध्याय २ शलोक ७ The Gita – Chapter 2 – Shloka 7 Shloka 7  इसलिये कायरतारूप दोष से उपहत हुए स्वभाववाला तथा धर्म के विषय में मोहित चित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, वह मेरे लिये कहिये ; क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, इसलिये आपके शरण हुए मुझको शिक्षा

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अध्याय २ शलोक ६

अध्याय २ शलोक ६ The Gita – Chapter 2 – Shloka 6 Shloka 6  हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिये युद्ध करना और न करना इन दोनों में से कौन-सा श्रेष्ठ है अथवा यह भी नहीं जानते की उन्हें हम जीतेंगे या हमको वे जीतेंगे । और जिनको मारकर हम जीना भी नहीं

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अध्याय २ शलोक ५

अध्याय २ शलोक ५ The Gita – Chapter 2 – Shloka 5 Shloka 5  इसलिये इन महानुभाव गुरुजनों को न मारकर मैं इस लोक में भिक्षा का अन्न भी खाना कल्याणकारक समझता हूँ ; क्योंकि गुरुजनों को मारकर भी इस लोक में रुधिर से सने हुए अर्थ और कामरूप भोगों को ही तो भोगूंगा ।। ५

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