Author name: TheGita Hindi

अध्याय २ शलोक २४

अध्याय २ शलोक २४ The Gita – Chapter 2 – Shloka 24 Shloka 24  क्योंकि यह आत्मा अच्छेध है, यह आत्मा अदाह्रा अक्लेध और नि:संदेह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है ।। २४ ।। The Soul is eternal, everlasting. It cannot be destroyed, broken or burnt; it […]

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अध्याय २ शलोक २३

अध्याय २ शलोक २३ The Gita – Chapter 2 – Shloka 23 Shloka 23  इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकता ।। २३ ।। The Soul cannot be cut by weapons, burnt by fire, absorbed by air, nor can water

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अध्याय २ शलोक २२

अध्याय २ शलोक २२ The Gita – Chapter 2 – Shloka 22 Shloka 22  जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त होता है ।। २२ ।। The Blessed Lord said: Just as a person gets rid of

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अध्याय २ शलोक २१

अध्याय २ शलोक २१ The Gita – Chapter 2 – Shloka 21 Shloka 21  हे पृथापुत्र अर्जुन ! जो पुरुष इस आत्मा को नाशरहित, नित्य, अजन्मा और अव्यय जानता है, वह पुरुष कैसे किसको मरवाता है और कैसे किसको मारता है ।। २१ ।। ARJUNA, he who knows the Soul to be eternal, indestructible, permanent

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अध्याय २ शलोक २०

अध्याय २ शलोक २० The Gita – Chapter 2 – Shloka 20 Shloka 20  यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है । क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है ; शरीर के मारे जाने पर भी

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अध्याय २ शलोक १९

अध्याय २ शलोक १९ The Gita – Chapter 2 – Shloka 19 Shloka 19  जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते ; क्योंकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारता है और न किसी के द्वारा मारा जाता है ।। १९

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अध्याय २ शलोक १८

अध्याय २ शलोक १८ The Gita – Chapter 2 – Shloka 18 Shloka 18  उस नाशरहित, अप्रमेय, नित्यस्वरूप जीवात्मा के ये सब शरीर नाशवान् कहे गये हैं । इसलिये हे भरतवंशी अर्जुन ! तू युद्ध कर ।। १८ ।। The Blessed Lord explained: O ARJUNA, only the body can be destroyed; but the soul is

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अध्याय २ शलोक १७

अध्याय २ शलोक १७ The Gita – Chapter 2 – Shloka 17 Shloka 17  नाशरहित तो तू उसको जान, जिससे यह सम्पूर्ण जगत् दृश्यवर्ग व्याप्त है । इस अविनाशी का विनाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है ।। १७ ।। He who is completely indestructible, present everywhere in the universe, and is imperishable, regard

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अध्याय २ शलोक १६

अध्याय २ शलोक १६ The Gita – Chapter 2 – Shloka 16 Shloka 16  असत् वस्तु की सत्ता नहीं है और सत् का अभाव नहीं है । इस प्रकार इन दोनों का ही तत्त्व तत्त्वज्ञानी पुरुषों द्वारा देखा गया है ।। १६ ।। The Blessed Lord stated: The unreal does not exist and the real

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अध्याय २ शलोक १५

अध्याय २ शलोक १५ The Gita – Chapter 2 – Shloka 15 Shloka 15  क्योंकि हे पुरुषश्रेष्ठ ! दुःख-सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरुष को ये इन्द्रिय और विषयों के संयोग व्याकुल नहीं करते, वह मोक्ष के योग्य होता है ।। १५ ।। Only he who is not affected by these senses and

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