Author name: TheGita Hindi

अध्याय २ शलोक ३४

अध्याय २ शलोक ३४ The Gita – Chapter 2 – Shloka 34 Shloka 34  तथा सब लोग तेरी बहुत कालतक रहने वाली अपकीर्ति का भी कथन करेंगे और मानवीय पुरुष के लिये अपकीर्ति मरण से भी बढ़कर है ।। ३४ ।। People will talk and look upon you, O ARJUNA, with disrespect. There is only […]

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अध्याय २ शलोक ३३

अध्याय २ शलोक ३३ The Gita – Chapter 2 – Shloka 33 Shloka 33  किंतु यदि तू इस धर्मयुक्त्त युद्ध को नहीं करेगा तो स्वधर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त होगा ।। ३३ ।। By not fighting this war, O ARJUNA, you are committing a sin because you fail to perform your duty

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अध्याय २ शलोक ३२

अध्याय २ शलोक ३२ The Gita – Chapter 2 – Shloka 32 Shloka 32  हे पार्थ ! अपने-आप प्राप्त हुए और खुले हुए स्वर्ग के द्वार रूप इस प्रकार के युद्ध को भाग्यवान् क्षत्रिय लोग ही पाते है ।। ३२ ।। Dear ARJUNA, you should consider yourself a very lucky warrior to fight in a

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अध्याय २ शलोक ३१

अध्याय २ शलोक ३१ The Gita – Chapter 2 – Shloka 31 Shloka 31  तथा अपने धर्म को देखकर भी तू शोक करने के योग्य नहीं है अर्थात् तुझे भय नहीं करना चाहिये ; क्योंकि क्षत्रिय के लिये धर्मयुक्त्त युद्ध से बढ़कर दूसरा कोई कल्याणकारी कर्तव्य नहीं है ।। ३१ ।। Looking upon your duty,

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अध्याय २ शलोक ३०

अध्याय २ शलोक ३० The Gita – Chapter 2 – Shloka 30 Shloka 30  हे अर्जुन ! यह आत्मा सबके शरीरों में सदा ही अवध्य है । इस कारण सम्पूर्ण प्राणियों के लिए तू शोक करने के योग्य नहीं है ।। ३० ।। ARJUNA, although the body can be slain, the Soul cannot. The Soul

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अध्याय २ शलोक २९

अध्याय २ शलोक २९ The Gita – Chapter 2 – Shloka 29 Shloka 29  कोई एक महापुरुष ही इस आत्मा को आश्चर्य की भाँति देखता है वैसा ही दूसरा कोई महापुरुष ही इसके तत्व का आश्चर्य की भांति वर्णन करता है तथा दूसरा कोई अधिकारी पुरुष ही इसे आश्चर्य की भांति सुनता है और कोई-कोई

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अध्याय २ शलोक २८

अध्याय २ शलोक २८ The Gita – Chapter 2 – Shloka 28 Shloka 28  हे अर्जुन ! सम्पूर्ण प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जाने वाले हैं, केवल बीच में ही प्रकट है ; फिर ऐसी स्थिति में क्या शोक करना है ।। २८ ।। ARJUNA, all beings

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अध्याय २ शलोक २७

अध्याय २ शलोक २७ The Gita – Chapter 2 – Shloka 27 Shloka 27  क्योंकि इस मान्यता के अनुसार जन्मे हुए की मृत्यु निश्चित है और मरे का जन्म निश्चित है । इससे भी इस बिना उपायवाले विषय में तू शोक करने के योग्य नहीं है ।। २७ ।। The Lord continued: Dear ARJUNA, knowing

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अध्याय २ शलोक २६

अध्याय २ शलोक २६ The Gita – Chapter 2 – Shloka 26 Shloka 26  किंतु यदि तू इस आत्मा को सदा जन्मनेवाला तथा सदा मारनेवाला मानता है, तो भी हे महाबाहो ! तू इस प्रकार शोक करने के योग्य नहीं है ।। २६ ।। Even if you incorrectly believe. O ARJUNA, that the Soul is

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अध्याय २ शलोक २५

अध्याय २ शलोक २५ The Gita – Chapter 2 – Shloka 25 Shloka 25  यह आत्मा अव्यक्त्त है, यह आत्मा अचिन्त्य है और यह आत्मा विकाररहित कहा जाता है । इससे हे अर्जुन ! इस आत्मा को उपर्युक्त्त प्रकार से जानकर तू शोक करने योग्य नहीं है अर्थात् तुझे शोक करना उचित नहीं है ।।

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