Author name: TheGita Hindi

अध्याय ५ शलोक २२

अध्याय ५  शलोक २२ The Gita – Chapter 5 – Shloka 22 Shloka 22  जो ये इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले सब भोग हैं, यद्यपि विषयी पुरुषों को सुख रूप भासते हैं तो भी दुःख के ही हेतु हैं और आदि अन्त वाले अर्थात् अनित्य हैं । इसलिये हे अर्जुन ! बुद्भिमान […]

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अध्याय ५ शलोक २१

अध्याय ५  शलोक २१ The Gita – Chapter 5 – Shloka 21 Shloka 21  बाहर के विषयों में आसक्त्ति रहित अन्त:करण वाला साधक आत्मा में स्थित जो ध्यान जनित सात्त्विक आनन्द है, उसको प्राप्त होता है ; तदनन्तर वह सच्चिदानन्दधन परब्रह्म परमात्मा  के ध्यान रूप योग में अभिन्न भाव से स्थित पुरुष अक्षय आनन्द का अनुभव

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अध्याय ५ शलोक २०

अध्याय ५  शलोक २० The Gita – Chapter 5 – Shloka 20 Shloka 20  जो पुरुष प्रिय को प्राप्त होकर हर्षित नहीं हो और अप्रिय को प्राप्त होकर उद्भिग्न न हो, वह स्थिर बुद्भि संशय रहित ब्रह्म वेत्ता पुरुष सच्चिदानन्दधन परब्रह्म परमात्मा में एकीभाव से नित्य स्थिति है ।। २० ।। One truly becomes established in

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अध्याय ५ शलोक १९

अध्याय ५  शलोक १९ The Gita – Chapter 5 – Shloka 19 Shloka 19  जिनका मन सम भाव में स्थित है, उनके द्वारा इस जीवित अवस्था में ही सम्पूर्ण संसार जीत लिया गया है ; क्योंकि सच्चिदानन्दधन परमात्मा निर्दोष और सम है, इससे सच्चिदानन्दधन परमात्मा में ही स्थित हैं ।। १९ ।। O Arjuna, those who

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अध्याय ५ शलोक १८

अध्याय ५  शलोक १८ The Gita – Chapter 5 – Shloka 18 Shloka 18  वे ज्ञानी जन विद्या और विनय युक्त्त ब्राह्मण में तथा गौ, हाथी, कुत्ते और चाण्डाल में भी समदर्शी ही होते हैं ।। १८ ।। The wise men treat everybody as equals O Arjuna, whether it be a learned and cultured Brahman, a

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अध्याय ५ शलोक १७

अध्याय ५  शलोक १७ The Gita – Chapter 5 – Shloka 17 Shloka 17  जिनका मन तद्रू प हो रहा है, जिनकी बुद्भि तद्रू प हो रही है और सच्चिदानन्दधन परमात्मा में ही जिनकी निरन्तर एकीभाव से स्थिति है, ऐसे तत्परायण पुरुष ज्ञान के द्वारा पाप रहित होकर अपुनरावृति को अर्थात् परम गति को प्राप्त होते

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अध्याय ५ शलोक १६

अध्याय ५  शलोक १६ The Gita – Chapter 5 – Shloka 16 Shloka 16  परन्तु जिनका वह अज्ञान परमात्मा के तत्त्व ज्ञान द्वारा नष्ट कर दिया गया है, उनका वह ज्ञान सूर्य के सदृश उस सच्चिदानन्दधन परमात्मा को प्रकाशित कर देता है ।। १६ ।। The Lord continued: People’s achievement of knowledge of their SELF has

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अध्याय ५ शलोक १५

अध्याय ५  शलोक १५ The Gita – Chapter 5 – Shloka 15 Shloka 15  सर्वव्यापी परमेश्वर भी न किसी के पाप कर्म को और न किसी के शुभ कर्म को ही ग्रहण करता है, किंतु अज्ञान के द्वारा ज्ञान ढका हुआ है, उसी से सब अज्ञानी मनुष्य मोहित हो रहे हैं ।। १५ ।। I, the all

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अध्याय ५ शलोक १४

अध्याय ५  शलोक १४ The Gita – Chapter 5 – Shloka 14 Shloka 14  परमेश्वर मनुष्यों के न तो कर्तापन की, न कर्मों की और न कर्म फल के संयोग की ही रचना करते हैं, किंतु स्वभाव ही बर्त रहा है ।। १४ ।। The Lord does not create the performance of actions (or Karma ),

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अध्याय ५ शलोक १३

अध्याय ५  शलोक १३ The Gita – Chapter 5 – Shloka 13 Shloka 13  अन्त:करण जिसके वश में है, ऐसा सांख्य योग का आचरण करने वाला पुरुष न करता हुआ और न करवाता हुआ ही नव द्वारों वाले शरीर रुप घर में सब कर्मों को मन से त्याग कर आनन्द पूर्वक सच्चिदानन्दधन परमात्मा के स्वरूप में

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