Author name: TheGita Hindi

अध्याय ६ शलोक ३३

अध्याय ६  शलोक ३३ The Gita – Chapter 6 – Shloka 33 Shloka 33  अर्जुन बोले ! हे मधुसूदन ! जो यह योग आपने सम भाव से कहा है, मन के चञ्चल होने से मैं इसकी नित्य स्थिति को नहीं देखता हूँ  ।। ३३ ।। Arjuna asked Shri Krishna: Dear Lord, I simply cannot regard the […]

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अध्याय ६ शलोक ३२

अध्याय ६  शलोक ३२ The Gita – Chapter 6 – Shloka 32 Shloka 32  हे अर्जुन ! जो योगी अपनी भांति सम्पूर्ण भूतों में सम देखता है और सुख अथवा दुःख को भी सब में सम देखता है, वह योगी परम श्रेष्ठ माना गया है ।। ३२ ।। Dear Arjuna, the Yogi who looks upon all beings

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अध्याय ६ शलोक ३१

अध्याय ६  शलोक ३१ The Gita – Chapter 6 – Shloka 31 Shloka 31  जो पुरुष एकीभाव में स्थित होकर सम्पूर्ण भूतों में आत्म रूप से स्थित मुझ सच्चिदानन्दधन वासुदेव को भजता है, वह योगी सब प्रकार से बरतता हुआ भी मुझमें बरतता है ।। ३१ ।। The Lord proclaimed: O Arjuna, I am present in all

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अध्याय ६ शलोक ३०

अध्याय ६  शलोक ३० The Gita – Chapter 6 – Shloka 30 Shloka 30  जो पुरुष सम्पूर्ण भूतों में सबके आत्मरूप मुझ वासुदेव को ही व्यापक देखता है और सम्पूर्ण भूतों को मुझ वासुदेव के अन्तर्गत* देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता ।। ३० ।। The Lord explained: O

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अध्याय ६ शलोक २९

अध्याय ६  शलोक २९ The Gita – Chapter 6 – Shloka 29 Shloka 29  सर्व व्यापी अनन्त चेतन में एकीभाव से स्थिति रुप योग से युक्त्त आत्मा वाला तथा सब में समभाव से देखने वाला योगी आत्मा को सम्पूर्ण भूतों में स्थित और सम्पूर्ण भूतों को आत्मा में कल्पित देखता है ।। २९  ।। The wiseman who

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अध्याय ६ शलोक २८

अध्याय ६  शलोक २८ The Gita – Chapter 6 – Shloka 28 Shloka 28  वह पापरहित योगी इस प्रकार निरन्तर आत्मा को परमात्मा में लगाता हुआ सुखपूर्वक परब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति रूप अनन्त आनन्द का अनुभव करता है ।। २८ ।। The sinless Yogi is constantly engaged in Yoga, and experiences no difficulty in achieving the

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अध्याय ६ शलोक २७

अध्याय ६  शलोक २७ The Gita – Chapter 6 – Shloka 27 Shloka 27  क्योंकि जिसका मन भली प्रकार शान्त है, जो पाप से रहित है और जिसका रजोगुण शान्त हो गया है, ऐसे इस सच्चिदानन्दधन  ब्रह्म के साथ एकीभाव हुए योगी को उत्तम आनन्द प्राप्त होता है  ।। २७ ।। Lord Krishna explained: The true

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अध्याय ६ शलोक २६

अध्याय ६  शलोक २६ The Gita – Chapter 6 – Shloka 26 Shloka 26  यह स्थिर न रहने वाला और चञ्चल मन जिस-जिस शब्दादि विषय के निमित्त से संसार में विचरता है, उस-उस विषय से रोक कर यानी हटा कर इसे बार-बार परमात्मा में ही विषय से निरुद्भ करे ।। २६ ।। The unsteady, wandering and constantly

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अध्याय ६ शलोक २५

अध्याय ६  शलोक २५ The Gita – Chapter 6 – Shloka 25 Shloka 25  कम-कम से अभ्यास करता हुआ उपरति को प्राप्त हो धैर्ययुक्त्त बुद्भि के द्वारा मन को परमात्मा में स्थित परमात्मा के सिवा और कुछ भी चिन्तन न करे ।। २५ ।। Once one has completely given up all desires created from his imagination

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अध्याय ६ शलोक २५

अध्याय ६  शलोक २५ The Gita – Chapter 6 – Shloka 25 Shloka 25  कम-कम से अभ्यास करता हुआ उपरति को प्राप्त हो धैर्ययुक्त्त बुद्भि के द्वारा मन को परमात्मा में स्थित परमात्मा के सिवा और कुछ भी चिन्तन न करे ।। २५ ।। Once one has completely given up all desires created from his imagination

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