Author name: TheGita Hindi

अध्याय ६ शलोक ४३

अध्याय ६  शलोक ४३ The Gita – Chapter 6 – Shloka 43 Shloka 43  वहाँ उस पहले शरीर में संग्रह किये हुए बुद्भि संयोग को अर्थात् सम बुद्भि रूप योग के संस्कारों को अनायास ही प्राप्त हो जाता है और हे कुरुनन्दन ! उसके प्रभाव से वह फिर परमात्मा की प्राप्ति रूप सिद्भि के लिये पहले […]

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अध्याय ६ शलोक ४२

अध्याय ६  शलोक ४२ The Gita – Chapter 6 – Shloka 42 Shloka 42  अथवा वैराग्यवान् पुरुष उन लोकों में न जाकर ज्ञानवान् योगियों के कुल में जन्म लेता है । परन्तु इस प्रकार जो यह जन्म है, सो संसार में नि:संदेह अत्यन्त दुर्लभ है ।। ४२ ।। Dear Arjuna, if he does not take birth

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अध्याय ६ शलोक ४१

अध्याय ६  शलोक ४१ The Gita – Chapter 6 – Shloka 41 Shloka 41  योगभ्रष्ट पुरुष पुण्यवानों के लोकों को अर्थात् स्वर्गादि उत्तम लोकों को प्राप्त होकर उनमें बहुत वर्षों तक निवास करके फिर शुद्भ आचरण वाले श्रीमान् पुरुषों के घर में जन्म लेता है ।। ४१ ।। The unsuccessful person in Yoga, Dear Arjuna, achieves

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अध्याय ६ शलोक ४०

अध्याय ६  शलोक ४० The Gita – Chapter 6 – Shloka 40 Shloka 40  श्रीभगवान् बोले —– हे पार्थ ! उस पुरुष का न तो इस लोक में नाश होता है और न परलोक में ही ; क्योंकि हे प्यारे ! आत्मोद्वार के लिये अर्थात् भगवतप्राप्ति के लिये कर्म करने वाला कोई भी मनुष्य दुर्गति को

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अध्याय ६ शलोक ३९

अध्याय ६  शलोक ३९ The Gita – Chapter 6 – Shloka 39 Shloka 39  हे श्रीकृष्ण ! मेरे इस संशय को सम्पूर्ण रूप से छेदन करने के लिये आप ही योग्य हैं ; क्योंकि आपके सिवा दूसरा इस संशय का छेदन करने वाला मिलना सम्भव नहीं है ।। ३९ ।। Lord Krishna, this is one of

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अध्याय ६ शलोक ३८

अध्याय ६  शलोक ३८ The Gita – Chapter 6 – Shloka 38 Shloka 38  हे महाबाहो ! क्या वह भगवतप्राप्ति के मार्ग में मोहित और आश्रय रहित पुरुष छिन्न-भिन्न बादल की भाँति दोनों ओर से भ्रष्ट होकर नष्ट तो नहीं हो जाता ? ।। ३८ ।। Arjuna continued: What happens to a man who can no

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अध्याय ६ शलोक ३७

अध्याय ६  शलोक ३७ The Gita – Chapter 6 – Shloka 37 Shloka 37  अर्जुन बोले — हे श्रीकृष्ण ! जो योग में श्रद्बा रखने वाला है ; किंतु संयमी नहीं है, इस कारण जिसका मन अन्तकाल  में योग से विचलित हो गया है, ऐसा साधक योग की सिद्भि को अर्थात् भगवत् साक्षात्कार को न प्राप्त

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अध्याय ६ शलोक ३६

अध्याय ६  शलोक ३६ The Gita – Chapter 6 – Shloka 36 Shloka 36  जिसका मन वश में किया हुआ नहीं है, ऐसे पुरुष द्वारा योग दुष्प्राप्य है और वश में किये हुए मन वाले प्रयत्नशील पुरुष द्वारा साधन से उसका प्राप्त होना सहज है —- यह मेरा मत है ।। ३६ ।। Lord Krishna continued:

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अध्याय ६ शलोक ३५

अध्याय ६  शलोक ३५ The Gita – Chapter 6 – Shloka 35 Shloka 35  श्रीभगवान् बोले —- हे महाबाहो ! नि:संदेह मन चञ्चल और कठिनता से वश में करने वाला है ; हे कुन्ती पुत्र अर्जुन ! यह अभ्यास और वैराग्य से वश में होता है ।। ३५ ।। Lord Krishna divinely replied: Dear Arjuna, undoubtedly,

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अध्याय ६ शलोक ३४

अध्याय ६  शलोक ३४ The Gita – Chapter 6 – Shloka 34 Shloka 34  क्योंकि हे श्रीकृष्ण ! यह मन बड़ा चञ्चल, प्रमथन स्वभाव वाला, बड़ा दृढ़ और बलवान् है । इसलिये उसका वश में करना मैं वायु को रोकने की भाँति अत्यन्त दुष्कर मानता हूँ ।। ३४ ।। Dear Krishna, the mind is truly very unstable,

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