Author name: TheGita Hindi

अध्याय ७ शलोक २७

अध्याय ७  शलोक २७ The Gita – Chapter 7 – Shloka 27 Shloka 27  हे भरत वंशी अर्जुन ! संसार में इच्छा और द्बेष से उत्पन्न सुख-दुःखादि द्बन्द्ब रूप मोह से सम्पूर्ण प्राणी अत्यन्त अज्ञता को प्राप्त हो रहे हैं ।। २७ ।। Arjuna, in this world, most beings are confused and deluded by the doubts created by […]

अध्याय ७ शलोक २७ Read More »

अध्याय ७ शलोक २६

अध्याय ७  शलोक २६ The Gita – Chapter 7 – Shloka 26 Shloka 26  हे अर्जुन ! पूर्व में व्यतीत हुए और वर्तमान में स्थित तथा आगे होने वाले सब भूतों को मैं जानता हूँ, परन्तु मुझको कोई भी श्रद्बा भक्त्ति रहित पुरुष नहीं जानता ।। २६ ।। O Arjuna, although I know of every single being

अध्याय ७ शलोक २६ Read More »

अध्याय ७ शलोक २५

अध्याय ७  शलोक २५ The Gita – Chapter 7 – Shloka 25 Shloka 25  अपनी योग माया से छिपा हुआ मैं सबके प्रत्यक्ष नहीं होता, इसलिये यह अज्ञानी जन समुदाय मुझ जन्म रहित अविनाशी परमेश्वर को नहीं जानता अर्थात् मुझको जन्मने मरने वाला समझता है ।। २५ ।। Shrouded by My own Yogmaya (divine powers), I am not

अध्याय ७ शलोक २५ Read More »

अध्याय ७ शलोक २४

अध्याय ७  शलोक २४ The Gita – Chapter 7 – Shloka 24 Shloka 24  बुद्भि हीन पुरुष मेरे अनुत्तम अविनाशी परम भाव को न जानते हुए मन इन्द्रियों से परे मुझ सच्चिदानन्दधन परमात्मा को मनुष्य की भाँति जन्म कर व्यक्त्ति भाव को प्राप्त हुआ मानते हैं ।। २४ ।। Dear Arjuna, those people who have little

अध्याय ७ शलोक २४ Read More »

अध्याय ७ शलोक २३

अध्याय ७  शलोक २३ The Gita – Chapter 7 – Shloka 23 Shloka 23  परन्तु उन अल्प बुद्भि वालों का वह फल नाशवान् है तथा वे देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त्त चाहे जैसे ही भजें, अन्त में वे मुझको ही प्राप्त होते हैं ।। २३ ।। The Lord said solemnly:

अध्याय ७ शलोक २३ Read More »

अध्याय ७ शलोक २२

अध्याय ७  शलोक २२ The Gita – Chapter 7 – Shloka 22 Shloka 22  वह पुरुष उस श्रद्बा से युक्त्त होकर उस देवता का पूजन करता है और उस देवता से मेरे द्वारा ही विधान किये हुए उन इच्छित भोगों को नि:संदेह प्राप्त करता है ।। २२ ।। Thus, once these people have been given their

अध्याय ७ शलोक २२ Read More »

अध्याय ७ शलोक २१

अध्याय ७  शलोक २१ The Gita – Chapter 7 – Shloka 21 Shloka 21  जो-जो सकाम भक्त्त जिस-जिस देवता के स्वरूप को श्रद्बा से पूजना चाहता है, उस-उस भक्त्त की श्रद्बा को मैं उसी देवता के प्रति स्थिर करता हूँ ।। २१ ।। Whichever god (deity) a person wishes to worship with faith, O Arjuna, I am

अध्याय ७ शलोक २१ Read More »

अध्याय ७ शलोक २०

अध्याय ७  शलोक २० The Gita – Chapter 7 – Shloka 20 Shloka 20  उन-उन भोगों की कामना द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे लोग अपने स्वभाव से प्रेरित होकर उस-उस नियम को धारण करके  अन्य देवताओं को भजते हैं अर्थात् पूजते हैं ।। २० ।। Driven by the desires which exist in their nature, ignorant

अध्याय ७ शलोक २० Read More »

अध्याय ७ शलोक १९

अध्याय ७  शलोक १९ The Gita – Chapter 7 – Shloka 19 Shloka 19  बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में तत्त्व ज्ञान को प्राप्त पुरुष, सब कुछ वासुदेव ही है —- इस प्रकार मुझको भजता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है ।। १९ ।। A Gyani or wise man who worship Me with great love and

अध्याय ७ शलोक १९ Read More »

अध्याय ७ शलोक १८

अध्याय ७  शलोक १८ The Gita – Chapter 7 – Shloka 18 Shloka 18  ये सभी उदार हैं, परन्तु ज्ञानी तो साक्षात् मेरा स्वरूप ही है —- ऐसा मेरा मत है ; क्योंकि वह मदगत मन बुद्भि वाला ज्ञानी भक्त्त अति उत्तम गति स्वरूप मुझ में ही अच्छी प्रकार स्थित है  ।। १८ ।। Although all

अध्याय ७ शलोक १८ Read More »

Scroll to Top