उम्मीद खो देना
अध्याय – 4 – श्लोक -11
हे अर्जुन ! जो भक्त्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उन को उसी प्रकार भजता हूँ ; क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं ।। ११ ।।
अध्याय – 9 – श्लोक -22
जो अनन्य प्रेमी भक्क्त जन मुझ परमेश्वर को निरन्तर चिन्तन करते हुए निष्काम भाव से भजते है, उन नित्य- निरन्तर मेरा चिन्तन करने वाले पुरुषो का योग क्षेम मै स्वयं प्राप्त कर देता हूँ ।। २२ ।।
अध्याय – 9 – श्लोक -34
मुझ मे मन वाला हो, मेरा भक्त्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर । इस प्रकार आत्मा को मुझ मे नियुक्त्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा ।। ३४ ।।
अध्याय – 18 – श्लोक -66
सम्पूर्ण धर्मों को अर्थात् सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझ में त्याग कर तू केवल एक मुझ सर्व शक्त्तिमान् सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा । मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त्त कर दूंगा, तू शोक मत कर ।। ६६ ।।
अध्याय – 18 – श्लोक -78
हे राजन् ! जहां योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीव धनुषधारी अर्जुन हैं, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है —-ऐसा मेरा मत है ।। ७८ ।।