मृत्यु

मृत्यु

अध्याय – 2 – श्लोक -13

जैसे जीवात्मा इस देह में बालकपन, जवानी और वृद्बावस्था होती है, वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है ; उस विषय में धीर पुरुष मोहित नही होता ।। १३ ।।

अध्याय – 2 – श्लोक -20

यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है । क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है ; शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता ।। २० ।।

अध्याय – 2 – श्लोक -22

जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त होता है ।। २२ ।।

अध्याय – 2 – श्लोक -25

यह आत्मा अव्यक्त्त है, यह आत्मा अचिन्त्य है और यह आत्मा विकाररहित कहा जाता है । इससे हे अर्जुन ! इस आत्मा को उपर्युक्त्त प्रकार से जानकर तू शोक करने योग्य नहीं है अर्थात् तुझे शोक करना उचित नहीं है ।। २५ ।।

अध्याय – 2 – श्लोक -27

क्योंकि इस मान्यता के अनुसार जन्मे हुए की मृत्यु निश्चित है और मरे का जन्म निश्चित है । इससे भी इस बिना उपायवाले विषय में तू शोक करने के योग्य नहीं है ।। २७ ।।

अध्याय – 2 – श्लोक -28

हे अर्जुन ! सम्पूर्ण प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जाने वाले हैं, केवल बीच में ही प्रकट है ; फिर ऐसी स्थिति में क्या शोक करना है ।। २८ ।।

मृत्यु

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