भेदभाव
अध्याय – 5 – श्लोक -18
वे ज्ञानी जन विद्या और विनय युक्त्त ब्राह्मण में तथा गौ, हाथी, कुत्ते और चाण्डाल में भी समदर्शी ही होते हैं ।। १८ ।।
अध्याय – 5 – श्लोक -19
जिनका मन सम भाव में स्थित है, उनके द्वारा इस जीवित अवस्था में ही सम्पूर्ण संसार जीत लिया गया है ; क्योंकि सच्चिदानन्दधन परमात्मा निर्दोष और सम है, इससे सच्चिदानन्दधन परमात्मा में ही स्थित हैं ।। १९ ।।
अध्याय – 6 – श्लोक -32
हे अर्जुन ! जो योगी अपनी भांति सम्पूर्ण भूतों में सम देखता है और सुख अथवा दुःख को भी सब में सम देखता है, वह योगी परम श्रेष्ठ माना गया है ।। ३२ ।।
अध्याय – 9 – श्लोक -29
मै सब भूतो मे सम भाव से व्यापक हूँ, न कोई मेरा अप्रिय है और न प्रिय है; परन्तु जो भक्त्त मुझको प्रेम से भजते है, वे मुझ मे है और मै भी उनमे प्रत्यक्ष प्रकट हूँ ।। २९ ।।