जो पुरुष सब भूतों द्बेष-भाव से रहित, स्वार्थ रहित सबका प्रेमी और हेतुरहित दयालु हैं तथा ममता से रहित, अहंकार से रहित सुख-दुःख़ों की प्राप्ति में सम और क्षमावान् हैं अर्थात् अपराध करने वाले को भी अभय देने वाला हैं ; तथा जो योगी निरन्तर संतुष्ट है मन-इन्द्रियों सहित शरीर को वश में किये हुए है और मुझ में दृढ़ निश्चय वाला हैं —- वह मुझ में अर्पण किये हुए मन-बुद्भि वाला भक्त्त मुझको प्रिय हैं ।। १३ – १४ ।।
अध्याय – 16 – श्लोक -19
मैं द्बेष करने वाले पापाचारी और कूरकर्मी नराधमों को मैं संसार में बार-बार आसुरी योनियों में ही डालता हूँ ।। १९ ।।
अध्याय – 18 – श्लोक -71
जो मनुष्य श्रद्धा युक्त्त और दोष दृष्टि से रहित होकर इस गीता शास्त्र का श्रवण भी करेगा, वह भी पापों से मुक्त्त होकर उत्तम कर्म करने वालों के श्रेष्ठ लोकों को प्राप्त होगा ।। ७१ ।।