अहंकार

अहंकार

अध्याय – 16 – श्लोक -4

हे पार्थ ! दम्भ, घमण्ड और अभिमान तथा क्रोध, कठोरता और अज्ञान भी —-ये सब आसुरी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं ।। ४ ।।

अध्याय – 16 – श्लोक -13

वे सोचा करते हैं कि मैंने आज यह प्राप्त कर लिया है और अब इस मनोरथ को प्राप्त कर लूंगा । मेरे पास यह इतना धन है और फिर भी यह हो जायगा ।। १३ ।।

अध्याय – 16 – श्लोक -14

वह शत्रु मेरे द्वारा मारा गया और उन दूसरे शत्रुओं को भी मैं मार डालूंगा । मैं ईश्वर हूँ, ऐश्वर्य को भोगने वाला हूँ । मैं सब सिद्धियों से युक्त्त हूँ और बलवान् तथा सुखी हूँ ।। १४ ।।

अध्याय – 16 – श्लोक -15

मै बड़ा धनी और बड़े कुटुम्ब वाला हूँ । मेरे समान दूसरा कौन है ? मैं यज्ञ करूँगा, दान दूंगा और आमोद प्रमोद करूँगा । इस प्रकार अज्ञान से मोहित रहने वाले तथा अनेक प्रकार से भ्रमित चित्त वाले मोह रूप जाल से समावृत और विषय भोगों में अत्यन्त आसक्त आसुर लोग महान् अपवित्र नरक में गिरते हैं ।। १५ – १६ ।।

अध्याय – 18 – श्लोक -26

जो कर्ता सड्गरहित, अहंकार के वचन न बोलने वाला, धैर्य और उत्साह से युक्त्त तथा कार्य के सिद्ध होने और न होने में हर्ष-शोकादि विकारों से रहित है —- वह सात्विक कहा जाता है ।। २६ ।।

अध्याय – 18 – श्लोक -58

उपर्युक्त्त प्रकार से मुझ में चित्त वाला होकर तू मेरी कृपा से समस्त संकटों को अनायास ही पार कर जायगा और यदि अहंकार के कारण मेरे वचनों को न सुनेगा तो नष्ट हो जायगा अर्थात् परमार्थ से भ्रष्ट हो जायगा ।। ५८ ।।

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