अध्याय ३ शलोक १७

अध्याय ३ शलोक १७

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The Gita – Chapter 3 – Shloka 17

Shloka 17

 परन्तु जो मनुष्य आत्मा में ही रमण करने वाला और आत्मा में ही तृप्त तथा आत्मा में ही संतुष्ट हो, उसके लिये कोई कर्तव्य नहीं है ।। १७ ।।

He, O Arjuna, who is satisfied and content in himself, and he who is absorbed in himself, actions and duties do not exist (for him).

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