अध्याय १ शलोक ३०

अध्याय १ शलोक ३०

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The Gita – Chapter 1 – Shloka 30

Shloka 30

हाथ से गाण्डीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है, इसलिये मै खड़ा रहने को भी समर्थ नहीं हूँ ।। ३० ।।

I can no longer stand; my knees are weak; my mind is clouded and spinning in many directions, and, dear KRISHNA, I am seeing bad signs.

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