अध्याय १ शलोक २७,२८

अध्याय १ शलोक २७,२८

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The Gita – Chapter 1 – Shloka 27,28

Shloka 27,28

उन उपस्थित सम्पूर्ण बन्धुओं को देखकर वे कुन्तीपुत्र अर्जुन अत्यन्त करुणा से युक्त्त होकर शोक करते हुए यह वचन बोले ।। २७, ।।

अर्जुन बोले —– हे कृष्ण ! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजनसमुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीर में कम्प एवं रोमांच हो रहा है ।। २८ ।।

The son of KUNTI (Arjuna), after viewing all of those relatives and friends posted in their positions on the battlefield, became melancholy and filled with compassion (love) for his relatives, and spoke in a sad voice:

Arjuna said:
O KRISHNA, seeing my kinsmen (relatives) standing before me to fight against me in this war, I find myself unable to move my body, and my mouth has become parched.

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